अफगान न बन जाए आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह भारत-ऑस्ट्रेलिया की चिंता

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नई दिल्ली। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच विदेश व रक्षामंत्रियों की टू प्लस टू वार्ता में अफगानिस्तान की स्थिति चर्चा के केंद्र में रही। बैठक में साझा चिंता जाहिर की गई कि अफगानिस्तान दोबारा आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह नहीं बनना चाहिए। अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत और ऑस्ट्रेलिया एक-दूसरे के साथ रणनीतिक सहयोग बनाए रखने पर भी सहमत हुए हैं।

विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और उनके ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष मैरिस पायने ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी तरह के आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए। यूएन प्रस्ताव का हवाला देते हुए दोनों विदेश मंत्रियों ने कहा कि अफगानिस्तान में महिलाओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा भी एक अहम मुद्दा है। मानवीय जरूरतों के आधार पर जो अफगान देश से बाहर जाना चाहते हैं, उन्हें इसका हक कैसे मिले इस मुद्दे पर भी बैठक में मंथन हुआ। बैठक में दोनों ही देशों ने दुनिया में आतंकवाद के बढ़ते खतरे पर विस्तृत बातचीत की।

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इंडो पैसिफिक में चीन के बढ़ते दबदबे पर अंकुश लगाने के लिए रणनीति से जुड़े मुद्दे भी बैठक में उठे। ऑस्ट्रेलिया ने स्पष्ट किया कि भारत हिन्द प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति है। क्वाड में ऑस्ट्रेलिया के आने के बाद दोनों देशों में रक्षा सहयोग भी बढ़ा है, जिसका प्रतीक मालाबार एक्सरसाइज, द्विपक्षीय नेवल एक्सरसाइज और अब रक्षा और विदेश मंत्रियों का टू प्लस टू डायलॉग है। टू प्लस टू बैठक में दोनों देश रक्षा सहयोग बढ़ाने पर भी सहमत हुए। भारत ने इस दिशा में भागीदारी के लिए ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित किया है। बातचीत के दौरान क्वाड की मौजूदा जरूरतों और आपसी सहयोग को बढ़ाने पर भी बातचीत हुई, ताकि इंडो पैसिफिक में बेरोक टोक नेविगेशन जारी रहे और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन सुनिश्चित हो।

बैठक के दौरान ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री ने ऑस्ट्रेलिया में होने वाले महत्वपूर्ण रक्षा अभ्यास तालिस्मन सवेर में भारत को शामिल होने का न्योता दिया। बातचीत के दौरान भारत की तरफ से छात्रों के वीसा का मसला भी उठा। ऑस्ट्रेलिया भारतीय छात्रों का पसंदीदा स्थान है। लेकिन कोविड के कारण आवागमन में भारी व्यवधान का सामना करना पड़ रहा है। ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय छात्रों की समस्या को संज्ञान में लेकर इन्हें दूर करने का भरोसा दिया है।

ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष मारिसे पायने और पीटर डटन के साथ यहां ‘टू प्लस टू’ वार्ता की। क्वाड समूह को एशिया के नाटो के रूप में वर्णित करने के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा, हम खुद को क्वाड कहते हैं। क्वाड एक ऐसा मंच है, जहां चार देश अपने लाभ और दुनिया के लाभ के लिए सहयोग करने आए हैं। पीछे मुड़कर देखें तो नाटो जैसा शब्द शीत युद्ध वाला शब्द है। मुझे लगता है कि क्वाड भविष्य में दिखता है, यह वैश्वीकरण को दर्शाता है, यह एक साथ काम करने के लिए देशों की जरूरतों को दर्शाता है।

जयशंकर ने कहा कि क्वाड वर्तमान में टीके, आपूर्ति श्रृंखला, शिक्षा और कनेक्टिविटी जैसे मुद्दों पर केंद्रित है। उन्होंने कहा, मैं इस तरह के मुद्दों और नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) या इस तरह के किसी अन्य संगठनों के बीच कोई संबंध नहीं देखता। इसलिए मुझे लगता है कि यह जरूरी है कि गलत तरीके से प्रस्तुत न किया जाए कि वहां की वास्तविकता क्या है।

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