नई दिल्ली । आरोपी को सलाखों के पीछे रखने के इरादे से आवश्यक अनुमति के बिना आरोप पत्र दाखिल करने के लिए अदालत ने दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को फटकार लगाई है। अपराध शाखा अदालत के निर्देश के बावजूद आरोप पत्र दाखिल करने की मंजूरी लेने में नाकाम रही, जिसके बाद मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने शस्त्र अधिनियम के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत देते हुए जांच एजेंसी को कड़ी फटकार लगाई।
न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी के खिलाफ केवल शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत आरोप तय किए गए। अदालत इसलिए अपराध पर संज्ञान नहीं ले पाई क्योंकि बार-बार अवसर दिए जाने और निर्देशों के बावजूद आरोप पत्र दाखिल करने के लिए अनुमति नहीं ली गई। अदालत ने कहा कि अपराध शाखा द्वारा शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत आरोप पत्र दाखिल किए जा रहे हैं। इसके लिए काफी समय गुजरने के बाद भी अधिनियम की धारा 39 के तहत आवश्यक मंजूरी नहीं ली जा रही। मजिस्ट्रेट अदालत ने जोर देकर कहा कि यह जानते हुए भी कि अदालत अपराध पर संज्ञान नहीं लेगी, आरोप पत्र दाखिल किए जाने का एकमात्र उद्देश्य आरोपी को स्वाभाविक जमानत के उसके अधिकार से वंचित करके उसे सलाखों के पीछे रखना है।
अदालत ने कहा कि उपरोक्त मामले को पुलिस आयुक्त, दिल्ली के संज्ञान में लाना उचित है और उन्हें निर्देश दिया जाता है कि वे दोषी अधिकारियों के खिलाफ कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो। अदालत ने कहा कि 27 अगस्त को अपराध शाखा के पुलिस उपायुक्त को तीन दिनों के भीतर शस्त्र अधिनियम की धारा 39 के तहत मंजूरी दाखिल करने का अंतिम मौका दिया गया था। अदालत ने इसे अनसुना करने पर अफसोस जताया। न्यायाधीश ने सात सितंबर के अपने आदेश में आरोपी की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए कहा कि आरोपी को अनिश्चित काल के लिए हिरासत में नहीं रखा जा सकता। इसलिए उसे जमानत पर रिहा किया जाता है।