लखनऊ। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के औपचारिक घोषणा के बाद जिस तरह ओबीसी के तमाम नेता बीजेपी छोड़कर जा रहे हैं,उससे पार्टी नेतृत्व की चिंता बढ़ी है।इसके बाद बीजेपी के सहयोगी दल निषाद पार्टी और अपना दल (एस) की गठबंधन में सियासी अहमियत और बार्गेनिंग पोजिशन बढ़ गई है, क्योंकि इन दोनों दलों का आधार भी ओबीसी समुदाय के बीच है।
इसकारण बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने दोनों ही सहयोगी दलों के साथ बैठक कर सीट बंटवारे पर मंथन किया। बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और अपना दल (एस) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल के साथ बैठक की।इस मौके पर बीजेपी ने अपने दोनों सहयोगी दलों से गठबंधन में रहने का भरोसा मांगा। इसकी वजह यह थी कि दो दिनों से यह चर्चा थी कि अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के नेता भी समाजवादी पार्टी में जा सकते हैं।इसकारण बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व सक्रिय होकर डैमेज कंट्रोल करने में जुट गया है।
दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे कद्दावर ओबीसी नेताओं का योगी कैबिनेट से इस्तीफा होने के साथ-साथ चार अन्य विधायकों ने भी बीजेपी छोड़ दी है।बीजेपी छोड़ने वाले दोनों ही ओबीसी नेताओं ने दलित, पिछड़ों, वंचितों के साथ भेदभाव करने का योगी सरकार पर आरोप लगाया है।
इसके बाद बीजेपी के सामने अपने उस सोशल इंजीनियरिंग को बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है, जिसके बूते भाजपा ने 2017 के चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत हासिल हुआ था।बीजेपी के सहयोगी दल अपना दल (एस) यानी अनुप्रिया पटेल पर भी निगाहें टिकी हैं। ओबीसी कद्दावर पिछले नेताओं को छोड़ने के बाद बीजेपी के सहयोगियों ने बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया है।अनुप्रिया पटेल ने 36 सीटों की मांग बीजेपी से की है, जिसमें पूर्वांचल के अलावा अवध बुंदेलखंड और कानपुर क्षेत्र में भी सीटें शामिल हैं।
2017 में अमित शाह ने गठबंधन बनाया था, तब अपना दल ने 17 सीटों की मांग रखी थी, लेकिन सीट शेयरिंग में अपना दल को बीजेपी ने 11 सीटें दी थी।इसके बाद अपना दल का स्ट्राइक रेट सबसे ज्यादा था, वो 11 सीटों में 9 सीट जीत कर आई थी।इस बार अपना दल की मांग 3 गुने से भी ज्यादा है।अपना दल (एस) को लगता है कि कम से कम 2 दर्जन सीटों पर उनका मजबूत दावा है।