सावधान! अंटार्कटिका में बची है सिर्फ अंतिम परत, पिघली तो महासागरों में होगी महाप्रलय

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लंदन । वायुमंडल में प्रदूषण और हो रहे जलवायु परिवर्तनों के बीच आसन्न संकट छिपा नहीं है। अंटार्कटिका में पिछले दिनों मार्च का तापमान जब सामान्य से 38 डिग्री सेल्सियस अधिक हुआ तो लॉस एंजिल्स के आकार की बर्फ की एक परत पिघल गई। वैज्ञानिकों को यह तो नहीं पता कि अत्यधिक तापमान ने इस घटना में क्या भूमिका निभाई लेकिन ‘वायुमंडलीय नदी’ से निकलने वाली गर्मी इसके लिए घातक साबित हुई। वायुमंडलीय नदी आर्द्रता की एक लंबी धारा होती है, जो गर्म हवा और जलवाष्प को उष्‍णकटिबंध क्षेत्रों से धरती के अन्य हिस्सों तक लेकर जाती है।


एक रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार को प्रकाशित एक नए अध्ययन में बताया गया है कि ‘आसमान की नदियां’, जो बारिश कराती हैं और बर्फ गिराती हैं, अत्यधिक तापमान, सतह को पिघलाने, समुद्री बर्फ को कमजोर करने और महासागरों का जलस्तर बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होती हैं। इन परिस्थितियों का अध्ययन अंटार्कटिका की दो बर्फ की परतों के पिघलने के दौरान किया गया। लारसेन ए और बी बर्फीली परतें क्रमशः 1995 और 2002 की गर्मियों में पिघल गई थीं।

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बर्फीली चादरों के पिघलने के क्या कारण?
अध्ययन के अनुसार बढ़ते पर्यावरण संकट ने खतरे को और बढ़ा दिया है और जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है, बची हुई सबसे बड़ी परत लारसेन सी पर भी खतरा मंडरा रहा है। अंटार्कटिका की बर्फीली चादरों को अस्थिर करने के कई कारक हैं। गर्म और शुष्क हवाएं जो ठंडी हवाओं के ऊपर बहने के बाद पहाड़ों से नीचे की ओर बहती हैं।
क्या हो अगर लारसेन सी पिघल जाए?


ये हवाएं तापमान में अचानक और नाटकीय ढंग से बदलाव का कारण बन सकती हैं, जो अंटार्कटिका में बर्फ के पिघलने की सबसे बड़ी वजह है। अगर लारसेन सी परत पिघलती है तो यह हमारे लिए चिंता का कारण बन सकती है क्योंकि इससे समुद्र का जल स्तर तेजी से ऊपर जाएगा। दुनियाभर में बर्फ की परतें टूट रही हैं और बहकर समुद्र तक पहुंच रही हैं जिससे जलस्तर बढ़ रहा है।

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