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सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर जल्द सुनवाई से किया इनकार

नई दिल्ली,। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में सीबीआई की तरफ से एफआईआर दर्ज होने के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर जल्द सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। आज इस मामले को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मेंशन करते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जल्द सुनवाई की मांग की। उन्होंने कोर्ट से कहा कि इस मामले की सुनवाई नौ बार स्थगित की जा चुकी है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले पर मैं सुनवाई नहीं कर रहा हूं। उस बेंच के समक्ष जाइए जिस बेंच के समक्ष ये मामला लिस्टेड है।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई जल्दबाजी नहीं है, कुछ दिनों का इंतजार किया जा सकता है। इस पर सिब्बल ने कहा कि इंतजार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि मामला 2021 का है और हम 2024 में हैं। इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से कहा गया है कि राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की सामान्य सहमति वापस ले ली है। इसके बावजूद सीबीआई मुकदमा दर्ज कर देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रहा है।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सीबीआई एक स्वतंत्र जांच एजेंसी है। इन मामलों को दर्ज करने में केंद्र की कोई भूमिका नहीं है। मेहता ने कहा था कि अगर सुप्रीम इस मामले को स्वीकार कर लेता है तो कई आदेशों को रद्द करना होगा। ऐसा करना जांच के लिए केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के आदेश पर सवाल उठाना होगा।

सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा था कि हम जांच में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि जब राज्य सरकार ने अपनी सामान्य सहमति को पहले ही वापस ले लिया है तब क्या सीबीआई के पास इसकी शक्ति है कि वो एफआईआर दर्ज करे। ऐसा कर सीबीआई देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रहा है। उन्होंने कहा था कि कोर्ट के आदेश के द्वारा दर्ज मामलों के अलावा सीबीआई ने कई मामले दर्ज कर लिए हैं। प्रमुख मसला उन मामलों का है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 6 सितंबर 2021 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका में कहा गया है कि कानून और व्यवस्था और पुलिस को संवैधानिक रूप से राज्यों के विशेष अधिकार क्षेत्र में रखा गया है। सीबीआई की ओर से मामले दर्ज करना अवैध है। ये केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक रूप से वितरित शक्तियों का उल्लंघन है।

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