लखनऊ । उप्र विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा है कि भारत का संसदीय जीवन लोकतांत्रिक है। हमारे डीएनए में ही लोकतंत्र और संसदीय परिपाटी है। उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य देशों में लोकतंत्र का विकास बाद में हुआ है। हमारे लोकतंत्र की संस्थाएं सभा और समितियां वैदिक ग्रन्थों और उसके बाद उत्तर वैदिक काल के गन्थों में मिलती है। महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में भी एक जगह पर मंत्री परिषद का उल्लेख है। भारत का लोकमन, भारत की प्रज्ञा, भारत का अपना शिष्टाचार, अपना व्यवहार, अपनी संस्कृति, अपना दर्शन, अपनी प्रीति, अपनी रीति, अपनी नीति यह सब भारत में प्राचीनकाल से ही है।
उप्र विधानसभा अध्यक्ष बुधवार को लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा विश्व लोकतंत्र दिवस के अवसर पर आहूत पीठासीन अधिकारियों के 81वें अखिल भारतीय सम्मलेन की वर्चुअल बैठक को सम्बोधित कर रहे थे। बैठक में ऑस्ट्रिया, गयाना, मालदीव, मंगोलिया, नामीबिया, श्रीलंका, मॉरीशस एवं जिम्बाब्वे आदि देशों के प्रतिनिधियों एवं देश के सभी विधान सभाओं के अध्यक्षों एवं विधान परिषदों के सभापतियों ने भाग लिया। सम्मेलन में प्रभावी और सार्थक लोकतंत्र को बढ़ावा देने में विधायिका की भूमिका पर चर्चा हुई।
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष, हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि संविधान सभा में डा. आम्बेडकर के भाषण का उद्घरण देते हुए कहा कि आम्बेडकर ने कहा कि भारत में लोकतंत्र और गणतंत्र बहुत पहले ही था। भारत में लोकतांत्रिक एवं गणतांत्रिक संस्थाएं पहले से मौजूद थीं। उन्होंने कहा कि जब संसदीय संस्थाएं शक्तिशाली रहती है उनका आदर होता है।
वह तेजस्वी रहती है। वह अपने निर्णयों को आम जनता और तंत्र के सदस्यों से मनवाने में सक्षम रहते है। महाभारत गवाह है कि जब सभा की शक्ति घटी तो युद्ध हो गया। वैदिककाल में सभा बहुत ताकतवर और शक्तिशाली संस्था थी।