-लोकसभा, विधानसभा चुनाव से महंगा है बार एसोसिएशन का चुनाव
-एक दिसम्बर 2022 से लागू बाईलाज को पूरे साल का मानकर मांगा केसों का विवरण, वकीलों में आक्रोश
प्रयागराज,। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का चुनाव लोक सभा और विधान सभा चुनाव से भी महंगा हो गया है। मतदाता सूची को लेकर जहां विवाद है, वहीं जमानत राशि और केसों की संख्या सहित अन्य मामलों को लेकर अधिवक्ताओं में रोष देखा जा रहा है। तीन दिनों में सैकड़ों अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों, एल्डर कमेटी और चुनाव कमेटी से शिकायत कर इसे वापस लेने की मांग की है। बुधवार को भी बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं ने इस सम्बंध में मांग पत्र सौंपा।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन कार्यकारिणी, एल्डर कमेटी, चुनाव कमेटी को सौंपे गए ज्ञापन में अधिवक्ताओं का कहना है कि पिछले दो सालों में प्रत्याशियों की ओर से जो जमानत राशि जमा कराई गई। वह रकम वर्तमान में जमा कराई जा रही सिक्योरिटी मनी से आधी थी। यानी इस साल दोगुनी जमानत राशि ली जा रही है। जैसे अध्यक्ष के लिए यह रकम एक लाख रूपये कर दी गई है। वहीं महासचिव के लिए 70 हजार रूपये ली जा रही है। जबकि, लोक सभा प्रत्याशियों की जमानत राशि अध्यक्ष पद के प्रत्याशी से चार गुना कम है। लोक सभा प्रत्याशी को 2019 के चुनाव में 25 हजार रूपये जमा करना पड़ा था। जबकि, 2022 के विधानसभा के चुनाव में प्रत्याशियों को 10 हजार रूपये जमानत राशि के रूप में जमा करनी पड़ी। जबकि, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव में गवर्निंग काउंसिल के पदाधिकारियों को विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों के बराबर की जमानत राशि जमा करनी पड़ रही है।
सौंपे गए मांग पत्र में अधिवक्ता मृत्यंजय तिवारी, वेणु गोपाल, पारिजात तिवारी, आनंद श्रीवास्तव, सुधीर, प्रखर श्रीवास्तव सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं का कहना है कि चुनाव कमेटी ने केसों का विवरण भी गलत मांगा है। उनका कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का संशोधित बाईलॉज एक दिसम्बर 2022 से लागू हुआ है। संशोधित बाईलॉज जब से लागू हुआ चुनाव कमेटी को उसी के अनुसार काम करना चाहिए था। जबकि, चुनाव कमेटी ने संशोधित बाईलॉज को उसके पहले भी लागू कर दिया है। जबकि, कोरोना का दौर 2020 से लेकर 2022 तक चला। उस दौर में अधिवक्ता परेशान थे। लिहाजा, प्रत्याशियों से पिछले वर्ष की तरह एक वर्ष का ही केसों का विवरण लिया जाना चाहिए। इन अधिवक्ताओं ने चुनाव कमेटी पर पर आरोप लगाया कि कमेटी ने जमानत राशि और केसों की संख्या तय करते समय अधिवक्ताओं से आम राय भी नहीं ली।
इसके अलावा मतदाता सूची को लेकर आपत्तियों को दर्ज कराने के बावजूद पूरी सूची नहीं जारी हुई। अधिवक्ताओं का कहना है कि सदस्यता शुल्क और पांच केस होने के बावजूद उनका नाम सूची में शामिल नहीं है। जबकि, उन्होंने आपत्ति भी दर्ज कराई। इसी तरह की शिकायत सैकड़ों अधिवक्ताओं की है। अधिवक्ताओं का यह भी कहना है कि चुनाव कमेटी ने आचार संहिता लागू कर प्रत्याशियों द्वारा सभी तरह के चुनाव प्रचार सामग्री के प्रयोग पर रोक लगा दी है लेकिन यह नहीं बताया कि प्रत्याशी अपना प्रचार किस तरह से करें। जबकि, नामांकन पत्र की बिक्री के दो दिन हो गए हैं। लिहाजा, जमानत राशि कम की जाए। कोविड के दौर को देखते हुए पिछले साल की तरह ही एक साल का ही केसों का विवरण लिया जाय। साथ ही मतदाता सूची में आपत्ति दर्ज करने वाले अधिवक्ताओं का नाम शामिल किया जाए।