भोपाल। खजुराहो नृत्य समारोह की अनुषांगिक गतिविधि “लयशाला” में शनिवार की शाम कला रसिक और नई पीढ़ी के कलाकार भरतनाट्यम एवं कथक जैसी महत्वपूर्ण शैलियों के विविध आयामों से रूबरू हुए। भरतनाट्यम के सुप्रसिद्ध गुरु मनु मास्टर ने दक्षिण भारत की प्रमुख नृत्य विधा पर संवाद सह प्रदर्शन किया। उन्होंने बताया कि भरतनाट्यम को सिर्फ प्रदर्शन कला समझना ही काफी नहीं है, यह अनुष्ठानिक नृत्य शैली है, जिसका आध्यात्मिक महत्व अधिक है।
उन्होंने तंजावुर वाणी के अड़वों का सूक्ष्म रूप से विवरण प्रस्तुत किया, साथ ही नृत्य की ताल और अभिनय पक्ष को भी रेखांकित किया। जयदेव रचित अष्टपदी और बालमुरली कृष्ण द्वारा रचित तिल्लाना में स्वयं द्वारा कोरियोग्राफिक प्रस्तुति का प्रदर्शन भी किया। उन्होंने भरतनाट्यम की परम्पराओं और उसके इतिहास का विवरण भी प्रस्तुत किया। प्रदर्शन के लिए उनका साथ शिष्य प्रणव प्रदीप और कीर्तना अनिल ने दिया।
इसके बाद कथक पर संवाद सह प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हुआ। जिसे सुप्रसिद्ध नृत्यांगना और गुरु शमा भाटे ने प्रस्तुत किया। शमा भाटे ने लय की कथा की बात की। उनका संवाद गुरु वंदना से प्रारंभ होकर कोरोग्राफिक प्रस्तुति तक चला। गुरु वंदना के विषय में उन्होंने बताया कि जो भी सत्य और सुंदर है, वह वंदना है। इसके बाद अभिनय पक्ष की कथा कहने कवित्त की बात हुई। उन्होंने अपनी शिष्याओं के सहयोग से पारंपरिक और स्वरचित कवित्त का प्रदर्शन किया। गत भाव पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि भाव में सेंस ऑफ टाइमिंग पता होना आवश्यक है। अगले क्रम में तराना, कजरी और अंत में नंदनार, जो एक शिवभक्त की कहानी पर आधारित थी, का प्रदर्शन किया।
समारोह के दौरान शनिवार को कलावार्ता की सभा में देश की प्रख्यात कथक नृत्यांगनाएं पद्मश्री नलिनी कमलिनी के साथ कलाविदों को संवाद का अवसर प्राप्त हुआ। नृत्य संसार की ऐसी जीवंत जोड़ी जिसने न सिर्फ नृत्य किया, बल्कि उसे जिया। यह कला समाज का सौभाग्य था कि खजुराहो के इस नृत्य समागम के बहाने उन्हें नलिनी कमलिनी जैसी विभूतियों को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने संवाद में नई पीढ़ी के कलाकारों को संबोधित करते हुए कहा कि कला से प्रेम कीजिए, उसके हिस्से का एक-एक पल भी उसे दीजिए, यदि ऐसा करेंगे तो कला आपको वो एक-एक पल लौटाएगी, उसके साथ बेईमानी मत कीजिए, वरना कभी कुछ प्राप्त नहीं होगा। एक कलाकार निराकार को आकार देकर साकार करता है। कलाकार कृष्ण नहीं, राधा नहीं, लेकिन वह उन्हें आत्मसात करता है तो वही भाव उसके नृत्य में से उमड़ कर आते हैं।
उन्होंने अपने गुरु जितेंद्र महाराज को याद करते हुए कहा कि हम अपने गुरु की फिक्र सबसे पहले करते थे। एक वाकया याद करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे गुरुजी दिल्ली के करोल बाग की एक बस्ती में रहा करते थे। हम दोनों बहनें अपने गुरुजी के भोजन हेतु अपने घर से नमक, मसाले इत्यादि लेकर जाते थे। उन्होंने कहा कि गुरु के शिष्य नहीं बल्कि उनका विश्वास बनिए, फिर देखिए वह कैसे इसे सार्थक करता है। जीवन में तृप्ति का नहीं, तृष्णा का भाव होना चाहिए, क्योंकि तृप्ति विराम देती है और तृष्णा अग्रसर करती है।
समारोह के दौरान लोकरंजन की सभा में महाराष्ट्र का सोंगी मुखौटा एवं भाविक दान एवं साथी, गुजरात द्वारा गढ़वी गायन की प्रस्तुति दी गई जिसमें उन्होंने सोनबाई आई के गीत…,पीठड आई के गीत…, शिवाजी महाराणा प्रताप और चारणी भाषा में दोहा और छंद प्रस्तुति दी। समारोह की शुरुआत सौंगी मुखौटा नृत्य से की गई। सौंगी मुखौटा नृत्य महाराष्ट्र और गुजरात के बीच सीमांत गांवों में निवास करने वाले जनजातियों का मूल नृत्य है। यह अत्यन्त आकर्षक रंग-बिरंगी वेशभूषा और हाथ में रंगीन डंडे लेकर प्रस्तुत किया जाता है।
“नेपथ्य”
भारतीय नृत्य के उन महत्पूर्ण घटकों को प्रदर्शित करने के उद्देश्य नेपथ्य प्रदर्शनी का संयोजन किया गया है, जिनका उद्देश्य कला को संपूर्णता प्रदान करना है। इन घटकों में वेशभूषाएं, मंच सज्जा, वेशभूषा-परिधान और रूप सज्जा, वाद्ययंत्र, साहित्य इत्यादि शामिल है। इस प्रदर्शनी का संयोजन अनूप जोशी ‘बंटी’ ने किया है। यह प्रदर्शनी विभिन्न भारतीय नृत्यों का सांस्कृतिक परिदृश्य और उनकी यात्रा पर आधारित है। यहां आने वाले कलाप्रेमियों के लिए यह प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इसमें कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी, मोहिनीअट्टम, मणिपुरी, कथकली, सत्रिया, कुचिपुड़ी, छाऊ जैसी नृत्य शैलियां शामिल हैं। प्रदर्शनी में नृत्यों के सुप्रसिद्ध नृत्य कलाकारों के छायाचित्र भी प्रदर्शित किए गए हैं ताकि कला रसिक नृत्य के साधकों को भी जान पाएं।