लखनऊ। देश की संसद को सर्वाधिक 80 सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय दल जातिगत समीकरणों और गुणा-भाग के आधार पर ही चुनाव की वैतरणी पार करते हैं। 2024 के आम चुनाव में एनडीए और इंडिया गठबंधन सभी का पहला एजेंडा अभी तो जातीय समीकरण साधता हुआ दिखाई दे रहा है।
यूपी में सपा और बसपा की राजनीति की शुरूआत कांग्रेस के विरोध से हुई। पहले बात सपा की की जाए तो सपा का कोर वोट बैंक यादव और मुस्लिम माना जाता रहा है। दिवंगत सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से लेकर उनके पुत्र पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक यादव और मुस्लिम वोट बैंक के सहारे सत्ता में रहे। बहुजन समाज पार्टी का कोर वोट बैंक एससी-एसटी को माना जाता है। बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर और कांशीराम के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती अपने को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी मानती हैं। सपा बसपा का वोट बैंक किसी जमाने में कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता था। कांग्रेस को सवर्णों का भी समर्थन हासिल था। लेकिन पिछले तीन दशकों में कांग्रेस यूपी में अपनी सियासी जमीन काफी हद तक खो चुकी है।
भारतीय जनता पार्टी को अपने कोर वोट बैंक के अलावा ओबीसी, दलितों और कम मात्रा में ही सही मुस्लिम वोटरों का समर्थन हासिल है। अपना दल की कुर्मी बिरादरी में अच्छी पकड़ मानी जाती है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ पूर्वांचल के करीब 18-20 प्रतिशत राजभर मतदाता होने का दावा किया जाता रहा है। सुभासपा की बंसी, आरख, अर्कवंशी, खरवार, कश्यप, पाल, प्रजापति, बिंद, बंजारा, बारी, बियार, विश्वकर्मा, नाई और पासवान जैसी उपजातियों पर भी मजबूत पकड़ मानी जाती है।
निषाद पार्टी के कोर वोट बैंक केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, नोनिया, मांझी और गोंड की आबादी उत्तर प्रदेश में लगभग 18 फीसदी है। ये जातियां उत्तर प्रदेश की करीब 5 दर्जन विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखती है। राष्ट्रीय लोक दल की पश्चिमी यूपी में जाट बिरादरी पर मजबूत अच्छी पकड़ मानी जाती है।
जातीय समीकरण का बड़ा खेल
यूपी की राजनीति में जातीय समीकरण का बड़ा खेल हमेशा से माना जाता रहा है। जातीय आंकड़ों पर गौर करें तो ओबीसी यानी पिछड़ों का प्रतिशत 40 पार करता हुआ दिखाई दे रहा है। अनुसूचित जाति और जनजाति की आबादी प्रदेश में 21 प्रतिशत के आसपास बताई जाती है। मुस्लिम मत प्रतिशत करीब 19.5 प्रतिशत के आसपास होता है। एनडीए और इंडिया गठबंधन इस चुनाव में इन्हीं जातीय समीकरणों के आधार पर ही उम्मीदवारी तय कर रहे हैं।
दोनों खेमों की है तैयारी
यूपी में एनडीए के बैनर तले भारतीय जनता पार्टी के साथ रालोद, अपना दल सोनेलाल, सुभासपा और निषाद पार्टी का गठबंधन है। बीजेपी 74 सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो वहीं गठबंधन में शामिल अपना दल और रालोद को दो-दो और सुभासपा और निषाद पार्टी को एक-एक सीट मिली हैं।
विपक्ष के इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस इंडिया मुख्य रूप से षामिल हैं। सपा के साथ अपना दल कमेरावादी, तृणमूल कांग्रेस और आजाद समाज पार्टी भी है। गठबंधन के बटवारे में 63 सीटें सपा और 17 सीटें कांग्रेस को मिली हैं। सपा ने अपने हिस्से की एक सीट भदोही तृणमूल कांग्रेस को दी है। कहा जा रह है कि सपा अपना दल कमेरावादी और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी को भी एक-एक सीट दे सकती है।
बीजेपी ने बदल दिया वोटों का गणित
भाजपा के पास अपने कोर वोटरों के अलावा सहयोगी दलों रालोद, अपना दल सोनेलाल, सुभासपा और निषाद का भी मजबूत वोट बैंक है। डबल इंजन की सरकार के कार्यों और सबके विकास की नीति ने एनडीए को बढ़त मिलती दिखती है। कई ओपनियन पोल में भी यूपी में एनडीए का पलड़ा भारी बताया गया है। भाजपा के मिशन-80 के विजय रथ को थामने के लिए समाजवादी पार्टी का अबकी पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) पर पूरा भरोसा है। बसपा से खिसकते दलित वोट बैंक को सपा के साथ ही कांग्रेस भी हथियाने की कोशिश में है। सपा-कांग्रेस गठबंधन को उम्मीद है कि दलित-मुस्लिम गठजोड़ से उन्हें अबकी चुनाव में लाभ होगा।
लोकसभा चुनाव 2019 में किस पार्टी को मिली कितनी सीट
2019 के आम चुनाव में एनडीए में बीजेपी और अपना दल सोनेलाल एक साथ मिलकर लड़ा था और एनडीए का 51.19 प्रतिशत वोट शेयर रहा था। जिसमें बीजेपी के खाते में 49.98 प्रतिशत और अपना दल (एस) को 1.21 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। वहीं महगठबंधन (बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल) को 39.23 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। जिसमें बसपा को 19.43 प्रतिशत, सपा को 18.11 प्रतिशत और रालोद को 1.69 प्रतिशत वोट मिला था। इसके अलावा कांग्रेस को इस चुनाव में 6.36 वोट शेयर मिला था। इस बार समीकरण बदल हुआ है। एनडीए में बीजेपी, अपना दल सोनेलाल, रालोद, सुभासपा और निषाद पार्टी है। इंडिया गठबंधन में सपा और कांग्रेस है। रालोद इस बार एनडीए के साथ है, और फिलवक्त बसपा किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। ऐसे में हर लिहाज से भाजपानीत एनडीए का पलड़ा भारी दिखाई देता है।