मऊ। लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है। इसके माध्यम से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों की भर्ती की जाती है। यह अवधारणा सबसे पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान पेश की गई थी। 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसका समर्थन किया था।
1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता वाले पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसका आधार तैयार किया था। हालांकि आयोग ने लेटरल एंट्री की कोई वकालत नहीं की थी। बाद में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद लेटरल एंट्री के जरिये भरा जाने लगा। नियमों के अनुसार, इसके लिए 45 वर्ष से कम आयु की सीमा निर्धारित की गई थी, दूसरी शर्त प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री का होना था। इसी तर्ज पर कई अन्य विशेषज्ञों को सरकार के सचिवों के रूप में नियुक्त किया जाता है। मगर नई व्यवस्था में दोनो शर्तों को नकारा जा रहा है।
लेटरल एंट्री योजना औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में शुरू हुई। 2018 में सरकार ने संयुक्त सचिवों और निदेशकों जैसे वरिष्ठ पदों के लिए विशेषज्ञों के आवेदन मांगे थे। यह पहली बार था कि निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के पेशेवरों को इसमें मौका दिया गया।
सवाल ये है के इस नियुक्ति में क्या आरक्षण प्रणाली का अनुपालन किया जाता है, तो जवाब सीधा सा है के नहीं। अगर यही 45 निउक्तियां यूपीएससी के माध्यम की जाती तो इसमें से 23 अधिकारी पिछड़े और दलित वर्ग से आते।
जिस प्रकार से एक महिला को निजी कॉरपोरेट कंपनी से लाकर सेबी जैसी महत्त्वपूर्ण संस्था की मुखिया बनाया गया है, उससे सवाल खड़ा हो रहा है के क्या उसकी वफादारी संबंधित घराने को लाभ पहुंचाने के लिए काम नहीं आएगी? इतना ही नहीं इस योजना से ये बात साबित होती है के यूपीएससी द्वारा चयनित वरिष्ट अधिकारियों में योग्यता की कमी है, जो उक्त अधिकारियों के मानसिक तनाव को बढ़ाने के साथ उनमे कटुता का भाव पैदा करेगी। अगर उच्च पदों पर सरकार ने नियुक्ति का ये तरीका बढ़ाया तो आने वाले समय में उच्च पदों तक पहुंचने के लिए पिछड़े और दलित वर्गो की भागीदारी ही खत्म हो जाएगी। जो भी सरकार सत्ता में आएगी अपने चहेतों की नियुक्ति मनमाने तरीके से करके उनको अपने इशारे पर चलाएगी।
सरकार को ये योजना वापस लेनी चाहिए और मौजूदा अधिकारियों में बिना भेद भाव के काबिल अधिकारियों की नियुक्ति इस प्रकार से करनी चाहिए के आरक्षण का पैमाना सुरक्षित भी रहे, और हर मंत्रालय में सभी वर्गों की भागीदारी भी बनी रहे।