नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा ने कहा है कि भाजपा के निलंबित सात विधायकों के खिलाफ चल रही कार्यवाही बिना देरी के खत्म हो जाएगी और उनका निलंबन असहमति के आवाज को खत्म करना कतई नहीं है। दिल्ली विधानसभा ने शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट में ये बातें कही। मामले में अगली सुनवाई 26 फरवरी को होगी।
आज सुनवाई के दौरान दिल्ली विधानसभा की ओर से पेश वकील सुधीर नंद्राजोग ने जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच से कहा कि विधायकों का निलंबन विपक्षी विधायकों के गलत आचरण के खिलाफ स्व-अनुशासन की एक प्रक्रिया है। नंद्राजोग ने सात विधायकों की ओर से दाखिल याचिका का विरोध करते हुए कहा कि विधानसभा अपनी गरिमा बनाए रखने को लेकर विवेक का इस्तेमाल करता है। उन्होंने कहा कि जब विधायकों ने उप-राज्यपाल को माफी मांगते हुए पत्र लिखा तो उन्हें विधानसभा को भी ऐसा ही पत्र लिखना चाहिए। तब कोर्ट ने विधायकों की ओर से पेश वकील जयंत मेहता से कहा कि इस मामले को सुलझाएं और विधानसभा को सम्मानपूर्वक पत्र लिखें।
सुनवाई के दौरान नंद्राजोग ने कहा कि निलंबित विधायकों ने आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि विधायकों को निलंबित किए जाने को आम आदमी पार्टी के बहुमत के राजनीतिक रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मामले में विपक्ष के नेता भी बराबर के दोषी हैं लेकिन उन्हें निलंबित नहीं किया गया। अगर असहमति की आवाज को बंद करना होता तो विपक्ष के नेता को भी निलंबित कर दिया जाता। नंद्राजोग ने कहा कि विधानसभा की विशेषाधिकार समिति ने अभी कोई कार्यवाही नहीं की है। इस मामले में देरी इसलिए की जा रही है क्योंकि मामला कोर्ट में लंबित है। विशेषाधिकार समिति की देर करने की मंशा नहीं है। किसी भी अंतिम फैसला पर पहुंचने से पहले इन विधायकों का पक्ष सुना जाएगा।
दिल्ली हाई कोर्ट ने 22 फरवरी को दिल्ली विधानसभा की विशेषाधिकार समिति से कहा था कि वो निलंबित किए गए सात भाजपा विधायकों के खिलाफ कार्रवाई स्थगित रखें। कोर्ट ने कहा था कि चूंकि ये मामला कोर्ट में लंबित है इसलिए विशेषाधिकार समिति को कार्रवाई जारी नहीं रखनी चाहिए। सुनवाई के दौरान बीजेपी विधायकों की ओर से पेश वकील जयंत मेहता ने कहा था कि निलंबित विधायक 21 फरवरी को विधानसभा के स्पीकर से मिले थे। कोर्ट के इस आदेश के बाद इन विधायकों ने स्पीकर से मुलाकात की थी। 21 फरवरी को सात निलंबित विधायकों की ओर से कहा गया था कि विधायकों ने उप-राज्यपाल से मिलकर माफी मांग ली है।
बता दें कि 20 जनवरी को कोर्ट ने भाजपा विधायकों से पूछा था कि क्या वे विधानसभा के स्पीकर से मुलाकात कर और उप-राज्यपाल से माफी मांग सकते हैं। सुनवाई के दौरान विधानसभा स्पीकर ने सुझाव दिया था कि अगर भाजपा विधायक उनसे मुलाकात करें और उप-राज्यपाल से माफी मांग ले तो इस विवाद का हल निकाला जा सकता है। 19 जनवरी को इन विधायकों की ओर से वकील जयंत मेहता ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ये पहले ही कह चुका है कि आप अनिश्चित काल तक किसी को निलंबित नहीं रख सकते हैं। जयंत मेहता ने कहा था कि पहली घटना पर किसी विधायक को तीन दिनों की अधिकतम सजा दी जा सकती है और दूसरी बार सात दिनों की अधिकतम सजा दी जा सकती है। इस मामले में इन विधायकों की ये पहले सजा है, ऐसे में उन्हें तीन दिन से ज्यादा की सजा नहीं दी जा सकती है।
दरअसल, 15 फरवरी को दिल्ली विधानसभा में उप-राज्यपाल वीके सक्सेना के अभिभाषण के दौरान कथित तौर पर बाधा डालने के आरोप में सात भाजपा विधायकों को निलंबित कर दिया गया। आप विधायक दिलीप पांडेय ने विधानसभा में सातों विधायकों के निलंबन का प्रस्ताव रखा जिसे पारित कर दिया गया। दिल्ली विधानसभा के स्पीकर रामनिवास गोयल ने विधायकों की ओर से बाधा डालने के मामले को विशेषाधिकार समिति को सौंप दिया। जिन सात विधायकों को निलंबित किया गया उनमें मोहन सिंह बिष्ट, अजय महावर, ओपी शर्मा, अभय वर्मा, अनिल वाजपेयी, जीतेंद्र महाजन और विजेंद्र गुप्ता शामिल हैं।