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कृत्रिम आंख भी लगा रहे केजीएमयू के दंत चिकित्सक

-केजीएमयू में आई प्रोस्थेसिस बनाने का प्रशिक्षण ले रहे चिकित्सक

लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के दंत चिकित्सा संकाय के प्रोस्थोडॉन्टिक्स विभाग में कम पैसे में चेहरे के विकृतियों को दूर देखने लायक बनाने का काम किया जाता है। यहां तक कि प्रोस्थोडॉन्टिक्स विभाग के चिकित्सक कृत्रिम आँख भी लगाने का काम करते हैं।

केजीएमयू के प्रोस्थोडॉन्टिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष डा. पूरनचंद ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि आई प्रोस्थेसिस एक कृत्रिम आंख होती है। इसे ऐसे पदार्थों से बनाई जाती है कि देखने में सही आंख जैसी लगती है। इस कृत्रिम आंख की पुतली भी चलती है, लेकिन दिखाई नहीं पड़ता है।

डा. पूरनचंद ने बताया कि मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेसिस चेहरे के हिस्सों को प्रतिस्थापित करने के लिए कृत्रिम विकल्प यानी तालू, कान, आंख या नाक के अंगों को बनाने का काम होता है।

केजीएमयू के प्रोस्थोडॉन्टिक्स और क्राउन एंड ब्रिजेस विभाग एवं माहीडोल विश्व विद्यालय की ओर से अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला चल रही है। इस कार्यशाला में देश के करीब 15 राज्यों से 100 से अधिक दंत चिकित्सक सहभाग कर रहे हैं।

शुक्रवार को डॉ. तीर्थवज श्रीथवज ने चेहरे के विकृतियों के प्राकृतिक रूप में पुन: निर्मित करने के बारे में बताया। डॉ. नाथधनई ने कृत्रिम अंग की मूल बातें समझाईं और डॉ. बिनित श्रेष्ठ ने इम्प्लांट रिटेन्ड नेत्र जैसे कृत्रिम अंग के बारे में बात की।

कार्यशाला तीन सत्रों में आयोजित की गई जिसमें नेत्र प्रोस्थेसिस बनाना सिखाया गया जिसमें आईरिस स्टेनिंग, नेत्र प्रोस्थेसिस का मोम पैटर्न और स्टेनिंग के साथ सिलिकॉन पैकिंग शामिल थी।

प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला के माध्यम से उपयोग की जाने वाली नई तकनीक के बायोकॉम्पेटिबल सामग्रियों और उनके प्रयोग विधि के बारे में सीखा।

डॉ. पूरन चंद ने कहा कि भारत में अधिक रोगियों को इम्प्लांट रिटेन्ड आई प्रोस्थेसिस जैसे उन्नत उपचारों का लाभ मिलना चाहिए। इसके लिए हमें अधिक संख्या में प्रशिक्षित प्रोस्थोडोंटिस्ट की आवश्यकता है और इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे शिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।

मरीजों को कम लागत और विश्वअस्तरीय चिकित्सा आम भारतीय नागरिकों तक उपलब्ध कराना हमारा प्राथमिक लक्ष्य है।

डॉ. सुनीत जुरैल ने इस बात पर जोर दिया कि बढ़ती प्रौद्योगिकियों के साथ तालमेल बिठाने और हमारे डॉक्टरों के वर्तमान ज्ञान को उच्चक्रित करने के लिए ऐसी कार्यशालाएं अक्सर आयोजित की जानी चाहिए।

डॉ. बलेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. रघुबर दयाल सिंह,डॉ. भास्कर अग्रवाल और डॉ. शुचि त्रिपाठी ने प्रतिभागी चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने में सहयोग किया।

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