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घोसी लोकसभा सीट पर सिर्फ एक बार खिला भाजपा का 'कमल'

मऊ (एजेंसी.)। उत्तर प्रदेश के घोसी लोकसभा सीट पर आजादी के बाद सिर्फ एक बार भाजपा का कमल खिला है। 2014 में पहली बार इस सीट पर मोदी लहर में कमल का फूल खिला और भारतीय जनता पार्टी के हरि नारायण राजभर ने यहां से चुनाव जीते। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन में बसपा प्रत्याशी अतुल राय ने भाजपा के हरि नारायण राजभर को हराकर यह सीट गठबंधन के तहत अपने नाम कर ली।

घोसी लोकसभा सीट का पौराणिक और ऐतिहासिक इतिहास रहा है। मऊ बुनकर बहुल क्षेत्र होने के नाते इसे ताने-बाने का शहर भी कहा जाता है। तमसा नदी के तट पर मऊ शहर बसा हुआ है और इसी के अंतर्गत घोसी लोकसभा क्षेत्र आता है,जिसमें पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। चार विधानसभा मऊ जिले के हैं और एक विधानसभा बलिया जिले के रसड़ा विधानसभा से आता है।

मतदाताओं की संख्या

घोसी लोकसभा क्षेत्र में पांचों विधानसभाओं में जनवरी 2024 तक कुल 20 लाख, 55 हज़ार, 880 मतदाता सम्मिलित हैं। इसमें पुरुष मतदाता 10 लाख, 90 हज़ार, 327 महिला मतदाता 09 लाख, 65 हज़ार 407 व थर्ड जेंडर 84 हैं।

विधानसभा वार मतदाताओं की सूची

– 353 मधुबन विधानसभा- 4 लाख, 04 हजार, 385

– 354 घोसी विधानसभा- 4 लाख, 36 हजार, 721

– 355 मोहम्मदाबाद गोहाना विधानसभा- 3 लाख, 78 हजार, 772

– 356 सदर विधानसभा- 4 लाख, 72 हजार, 641

– रसड़ा विधानसभा- 3 लाख, 63 हजार, 361

मऊ की साक्षरता दर की बात करें तो यहां के औसत साक्षरता दर 75.6 प्रतिशत है। यहां की लगभग 77 प्रतिशत जनता ग्रामीण इलाकों में है, जबकि 23 प्रतिशत जनता शहरों में निवास करती है।

घोसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभाओं में एक विधानसभा बलिया जिला के रसड़ा विधानसभा जुड़ा हुआ है। इस लोकसभा क्षेत्र में 1952 से लेकर 1999 तक कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का दबदबा रहा है। 1999 से सपा और बसपा के बीच यह सीट रही। 2014 में भाजपा का कमल खिला।

लोकसभा के ये हैं प्रमुख मुद्दे

अगर हम घोसी लोकसभा सीट पर 2024 चुनाव को लेकर मुद्दे की बात करें तो मऊ में विकास पुरुष कहे जाने वाले कल्पनाथ राय के निधन के बाद से विकास कार्यों का टोटा लगा हुआ है और यहां पर बंद पड़े दो कताई मील धूल चाट रही हैं। मतदाताओं का कहना है कि यहां उच्च शिक्षा संस्थानों का अभाव है। बाहरी प्रतिनिधित्व के कारण विकास के मामले में मऊ उपेक्षा का शिकार है। वर्तमान सांसद अतुल राय का पूरा 5 वर्ष का कार्यकाल जेल में ही बीत गया। इस बार स्थानीय प्रतिनिधित्व भी एक अहम मुद्दा है। बुनकरों के लिए अपना माल बेचने के लिए कोई बाजार नहीं। देवांचल में बारिश के मौसम में बाढ़ का कहर और गर्मी के मौसम में आग का तांडव मधुबन विधानसभा के ग्रामीणों को झेलना पड़ता है

1952 से लेकर अब तक कौन रहा इस सीट के सांसद

देश के आजादी के बाद पहली बार हुए लोकसभा चुनाव 1952 में इस सीट पर इंडियन नेशनल कांग्रेस से अलगू राय शास्त्री को जीत मिली थी। इनका योगदान देश को आजादी दिलाने में अहम था और यह आजादी की लड़ाई में कई बार जेल भी जा चुके थे। 1957 में दूसरी बार लोकसभा के चुनाव में उमराव सिंह भी नेशनल इंडियन कांग्रेस से चुनाव लड़कर जीत हासिल किया। 1962 के लोकसभा चुनाव में यह सीट वामपंथी के कब्जे में चली गई और यहां से पहली बार जय बहादुर सिंह चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे। 1969 में सीपीआई से झारखंडे राय सांसद बने। 1971 में वह दूसरी बार सांसद बने और उसके बाद 1977 में जनता पार्टी से शिवराम राय ने चुनाव में जीत हासिल की।

1980 में फिर तीसरी बार सीपीआई से झारखंडे राय चुनाव जीतने में सफल हुए। 1984 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से राजकुमार राय ने बाजी मारी और 1989 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से पहली बार कल्पनात राय चुनाव में विजयी हुए। 1991 में कल्पनाथ का दूसरी बार इंडियन नेशनल कांग्रेस से विजयी हुए। लोकसभा चुनाव 1996 में कल्पनाथ राय को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो वह निर्दल के रूप में चुनाव मैदान में पहुंचकर चुनाव जीते और फिर 1998 में कल्पना राय समता पार्टी से चुनाव जीतने में सफल रहे। 1999 मध्यवर्ती चुनाव हुआ, जिसमें बसपा से बालकृष्ण चौहान विजयी हुए। 2004 में इस सीट पर सपा से चंद्रदेव राजभर चुनाव जीते और 2009 में यह सीट बसपा के खाते में पहुंची और दारा सिंह चौहान चुनाव जीते। 2014 में पहली बार इस सीट पर मोदी लहर में कमल का फूल खिला और भारतीय जनता पार्टी के हरि नारायण राजभर ने यहां से चुनाव जीता। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन में बसपा प्रत्याशी अतुल राय ने भाजपा के हरि नारायण राजभर को हराकर यह सीट गठबंधन के तहत अपने नाम बसपा से कर ली।

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