निजाम बदलते खत्म हुई बात बादशाहत फिर भी विपक्ष का चहेता था मुख्तार
मऊ, । सदर सीट से पांच बार का विधायक रहे माफिया मुख्तार अंसारी गुरुवार की देर शाम हार्ट अटैक से मौत हो गई। मुख्तार अंसारी बांदा के मंडल जेल में बंद थे और बीमार थे हाल ही में उनका बांदा मेडिकल कॉलेज में भर्ती भी कराया गया था जहां हालत स्थिर होने पर उन्हें वापस जेल भेज दिया गया था। मुख्तार अंसारी के मौत से पूरे यूपी में हाई अलर्ट है और सियासत भी गरमाती नजर आ रही है। जहां विपक्ष सरकार को घेरने में लगी हुई है वही माफिया मुख्तार के परिवार वाले भी मुख्तार की मौत पर संदेह जाहिर कर रहे हैं। पोस्टमार्टम के बाद मुख्तार अंसारी को उनके पैतृक गृह जनपद गाजीपुर के यूसुफपुर मोहम्मदाबाद स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक किया जाएगा।
गाजीपुर के एक छोटे से कस्बे यूसुफपुर मोहम्मदाबाद से निकलकर एक युवा मुख्तार अंसारी कैसे माफिया मुख्तार अंसारी बन गया इसकी कहानी भी काफी दिलचस्प है।
गाजीपुर के यूसुफपुर मोहम्मदाबाद में सुब्हानऊल्लाह अंसारी और बेगम राबिया के घर जन्मे मुख्तार अंसारी का पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीति वाला रहा मुख्तार के दादा मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और महात्मा गांधी के काफी करीबी रहे तो वहीं मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर उस्मान भी महावीर चक्र विजेता रहे।
घर के राजनीतिक माहौल के बावजूद मुख्तार युवावस्था में दबंगई और प्रभावशाली व्यक्ति बनने का महत्वकांक्षा रखकर बीएचयू की राजनीति से शुरुआत की। लेकिन पैसों की जरूरत में मुख्तार को जरायम की दुनिया की तरफ बढ़ा दिया। लोगों को मुख्तार के अपराधिक प्रवृत्ति की जानकारी तब हुई जब उसने पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए तत्कालीन विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष नंदकिशोर रुंगटा का अपहरण कर लिया और फिरौती के तीन करोड रुपए मांगे फिरौती मिलने के बाद भी नंदकिशोर रुंगटा की हत्या कर दी गई।
इस घटना के बाद मुख्तार अपराध की दुनिया का नया खिलाड़ी बनकर निकला। अब बड़े-बड़े माफिया गैंग मुख्तार के संपर्क में आने लगे। उसे समय के बड़े गैंग मखनू सिंह का गिरोह पूर्वांचल में सक्रिय था और मुख्तार उसका हिस्सा बन गया। इसके बाद मुख्तार ने फिर मुड़ कर नहीं देखा मुख्तार ने अपने बल पर अपने बड़े भाई अफजाल अंसारी को विधायक बनाया लेकिन मुख्तार कब लगने लगा था कि उसे अपराध में संरक्षण के लिए राजनीति में जाना जरूरी हो गया है।
1996 तक आते-आते मुख्तार अंसारी पूर्वांचल का माफिया बन गया था पूर्वांचल के कोयला ठेके से लेकर के रेलवे ठेके तक और तमाम सरकारी ठेकों में उसकी दखलअंदाजी बढ़ गई थी बिना मुख्तार के पर्मिशन ठेके मिलने मुश्किल हो गए थे मुख्तार के अपराध का साम्राज्य लगातार बढ़ता जा रहा था और उसके ऊपर मुकदमे भी बढ़ते जा रहे थे। फिर क्या था 1996 में मुख्तार अंसारी ने बसपा से टिकट मांगा और पड़ोस के जिले मऊ के मऊ सदर सीट से मैदान में कूद गया।
मुख्तार ने सीट से जीत हासिल की ओर विधायक बन बैठा धीरे-धीरे मुख्तार की पकड़ राजनीति में मजबूत होती गई और वह मऊ सदर को अपना गढ़ बनाकर लगातार पांच बार जीत हासिल कर इतिहास रच दिया। मुख्तार इस सीट से 1996 से लगातार 2022 तक विधायक रहा 2022 में किन्हीं कारणों से उसने यह सीट छोड़ दी और अपने बेटे अब्बास अंसारी को यहां से मैदान में उतार दिया मुख्तार के बेटे अब्बास ने भी इस सीट से जीत हासिल कर विधानसभा की राह पकड़ ली।
2005 में मऊ में हुए सांप्रदायिक दंगों में खुली जिप्सी से मुख्तार का लहराता हुआ वीडियो जमकर वायरल हुआ और उसके बाद इस दंगे के आरोप में मुख्तार को जेल जाना पड़ा 2005 में ही गाजीपुर के मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र के तत्कालीन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की उनके सात साथियों के साथ गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में भी माफिया मुख्तार अंसारी का नाम आया और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया।
लेकिन मुख्तार का रसूख राजनीति में इतना बढ़ गया था कि वह तत्कालीन राजनीतिक पार्टियों का चहेता बन गया था। पूर्वांचल के दो दर्जन लोकसभा सीटों और 50 से 60 विधानसभा सीटों पर माफिया मुख्तार अंसारी का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव ही राजनीतिक दलों की मजबूरी थी।
पूर्वांचल के वाराणसी गाजीपुर बलिया जौनपुर और मऊ में मुख्तार का वर्चस्व रहा लेकिन यूपी का निजाम बदलते ही मुख्तार की बादशाह जाती रही। पंजाब जेल में बंद मुख्तार अंसारी को यूपी लाया गया और बांदा जेल में निरुद्ध कर दिया गया जहां से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही उसकी सुनवाई होती रही।
मुख्तार अंसारी के 500 करोड़ की संपत्ति या तो जप्त कर दी गई है उसे पर बुलडोजर चला दिया गया मुख्तार के करीबियों के सम्पत्ति पर भी चुन चुन कर बुलडोजर चलाए गए । बुलडोजर चलने और कार्यवाही का खौफ इस कदर था कि जिस मुख्तार अंसारी की 90 के दशक में तूती बोलती थी 2022 तक आते-आते उस माफिया मुख्तार अंसारी के नाम के साथ लोग अपना नाम जोड़ने में भी डरने लगे थे।