लखनऊ। लोकसभा चुनाव-2019 में भाजपा के वोट प्रतिशत में बेतहाशा वृद्धि हुई थी। इसके बावजूद 2014 की अपेक्षा भाजपा की नौ सीटें कम हो गयी थीं। अब भाजपा 2014 के जीत से भी आगे बढ़ने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही है। वहीं समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर पांच सीटों को बढ़ाने के लिए फूंक-फूंककर कदम रख रही है, लेकिन वह अपने गठबंधन के दल-दल में फंसी हुई है। वर्तमान में उसकी परेशानी का कारण कांग्रेस द्वारा अभी तक एक भी उम्मीदवार खड़ा न किया जाना है।
उल्लेखनीय है कि पिछली बार भाजपा को प्रदेश में 49.98 प्रतिशत मत अकेले मिले थे, जो 2014 में मिले 42.63 प्रतिशत की अपेक्षा 7.35 प्रतिशत ज्यादा थे। इसके बावजूद सपा-बसपा के गठबंधन का असर दिखा और 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमटने वाली बसपा ने 2019 में 10 सीटों पर कब्जा जमा लिया। हालांकि सपा के सीटों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ और वह पांच सीटों तक ही सीमित रह गयी। उन पांच सीटों में भी उपचुनावों में दो सीटों को भाजपा ने छिन लिया।
इस बार बसपा का किसी के साथ गठबंधन नहीं है। सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर आईएनडीआईए गठबंधन का हिस्सा है। सपा भाजपा की मुख्य प्रतिद्वद्वी मानकर चल रही है। उसके कार्यकर्ताओं और नेताओं में भी उत्साह है, लेकिन बसपा ने अभी तक बहुत कम सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है। बसपा भी फूंक-फूंककर कदम उठा रही है। सपा की कोशिश है कि दो बार से वह पांच सीटों पर सिमट रही है। उन सीटों की संख्या को बढ़ाया जाय, वहीं नेपत्थ्य में जाती कांग्रेस के पास करो या मरो का सवाल है।
इसके बावजूद कांग्रेस ने अपने हिस्से की मिली 17 सीटों पर अभी तक उम्मीदवार नहीं उतारे। इसको लेकर सपा भी नाराज है, समाजवादी पार्टी के सूत्रों के अनुसार यह नाराजगी कांग्रेस को बता भी दिया गया है। उधर कांग्रेस और सपा का वार रूम भी साझा बनाया गया है, जिससे रणनीतियों को साझा रूप से बनाया जा सके और भाजपा से एक साथ मिलकर मुकाबला किया जा सके।
उधर, भाजपा नेताओं का कहना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में 24.80 प्रतिशत वोट की वृद्धि हुई थी और 61 सीटों का उप्र में इजाफा हुआ। 2019 में सपा-बसपा के गठबंधन के बावजूद भाजपा के वोटों में 7.35 प्रतिशत वोट का इजाफा हुआ। इस बार भाजपा पचपन प्रतिशत से ज्यादा वोट पाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। इसके साथ ही भाजपा यह मानकर चल रही है कि उप्र में सबका सुपड़ा साफ हो जाएगा। उप्र के 80 लोकसभा सीटों पर सिर्फ कमल खिलेगा।
हालांकि किसको कितना मत मिलेगा या किसका चेहरा गिरेगा। यह तो आने वाले चार जून के बाद ही तय होगा, लेकिन अभी सभी दल अपने-अपने लक्ष्य को लेकर चुनावी मैदान में दिन-रात एक कर रहे हैं। एक-दूसरे पर जुबानी जंग में भी कोई दल पीछे नहीं है।