नेतृत्व समागम : फाइबर आप्टिक कनेक्टिविटी से खुली शिक्षा के बढ़े अवसर : प्रो. डी. सहस्रबुद्धे
लखनऊ। देश की शिक्षा प्रणाली में भारतीय भाषाओं को शामिल कर उनकी अनिवार्यता को बढ़ायी जाय। साथ ही भर्ती के दौरान भारतीय भाषाओं को वांछनीय योग्यता के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।
यह बातें भारतीय भाषाओं के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष चामू कृष्ण शास्त्री ने अखिल भारतीय संस्थागत नेतृत्व समागम में शुक्रवार को लखनऊ विश्वविद्यालय में अपने उद्बोधन के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि इस कदम से इन भाषाओं के अध्ययन में अधिक रुचि पैदा होगी। खासकर यह देखते हुए कि भारत की 90 प्रतिशत आबादी अंग्रेजी में पारंगत नहीं है। उन्होंने 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को भारतीय भाषाओं पर आधारित करने की वकालत की।
उन्होंने भारतीय भाषाओं को महत्वाकांक्षी भाषाओं में बदलने पर काम करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराने पर जोर दिया। इसने केंद्र सरकार को पाठ्यपुस्तकों,स्वयं पोर्टल और विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्मों और उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा कार्यान्वयन में तीन साल के भीतर इस समावेशन को पूरा करने की नीति शुरू करने के लिए प्रेरित किया। शास्त्री ने सुझाव दिया कि शिक्षकों को बहुभाषी होना चाहिए और इन भाषाओं को पढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए ग्रीष्मकालीन शिविरों की शुरुआत की जानी चाहिए।
राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी फोरम (एनईटीएफ) के अध्यक्ष प्रोफेसर अनिल डी. सहस्रबुद्धे ने कहा कि आज साढ़े छह लाख गांवों में से साढ़े तीन लाख को अब फाइबर ऑप्टिक कनेक्टिविटी प्राप्त हुई है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत ऑनलाइन डिजिटल और खुली शिक्षा के अवसर पैदा हो रहे हैं।
उन्होंने एआईसीटीई द्वारा ‘अनुवादिनी’ की शुरूआत पर चर्चा की, जो एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित उपकरण है। यह अध्ययन सामग्री और पुस्तकों के राष्ट्रीय, स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद की सुविधा प्रदान करता है।
उन्होंने बताया कि 35 करोड़ छात्रों में से 25.9 करोड़ छात्रों ने ‘अपार’ आईडी के साथ पंजीकरण कराया है, जो एक बड़ी उपलब्धि है। प्रोफेसर सहस्रबुद्धे ने दक्षता और एकरूपता बढ़ाने के लिए संस्थानों के लिए एकीकृत डेटा सबमिशन पोर्टल का प्रस्ताव करते हुए ‘एक राष्ट्र, एक डेटा’ की अवधारणा पर भी जोर दिया।
शिक्षा के लिए भारतीय छात्रों के विदेश जाने की प्रवृत्ति में बदलाव पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने विदेशी छात्रों को आकर्षित करने और देश की खोई हुई विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए वन-स्टॉप समाधान लागू करने का सुझाव दिया। अंत में उन्होंने स्थानीय स्तर पर छात्रों की शिकायतों के त्वरित समाधान पर जोर दिया।