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हाईकोर्ट से 79 वर्षीय रेल कर्मी को मिला न्याय

–सेवा समाप्ति आदेश रद्द कर सेवा जनित परिलाभ के भुगतान का निर्देश

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेलवे के सीनियर रक्षक की सेवा समाप्ति आदेश को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया और सेवा जनित सभी परिलाभ पाने का हकदार ठहराया है।

कोर्ट ने काम नहीं तो दाम नहीं के सिद्धांत के तहत कहा कि याची को बकाया वेतन नहीं मिलेगा। किंतु सेवा जनित अन्य परिलाभ पाने का उसे हक है, जिसे रेलवे को तीन माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन ने पांचू गोपाल घोष की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

मालूम हो कि बिना विभागीय जांच के याची को सेवा से हटा दिया गया। अपील भी खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने 7 मार्च 2010 के आदेश से बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगाते हुए विभागीय जांच कर नये सिरे से आदेश पारित करने का निर्देश दिया। इसके बाद विभागीय जांच शुरू की गई। पांच आरोप लगाये गये। जांच कमेटी ने 4 मई 12 को जांच रिपोर्ट दी और कहा कि मामला 35 साल पुराना है। आरोप साबित करने के लिए दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। आरोप सिद्ध नहीं पाया गया। किंतु यह भी कारण नहीं बताया कि आखिर साक्ष्य क्यों उपलब्ध नहीं थे।

विभागीय अधिकारी इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हुए। कहा कि 1976 की बर्खास्तगी आदेश को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए था। और 1976 के बर्खास्तगी आदेश के आधार पर नये सिरे से 5 जून 12 को बर्खास्त कर दिया। कोर्ट ने इसे कल्पनातीत दिग्भ्रमित आदेश करार देते हुए रद्द कर दिया। कहा कि हाईकोर्ट ने जांच का आदेश दिया था। जांच रिपोर्ट में पांचों आरोप सिद्ध नहीं हुए। सिद्ध करने के लिए साक्ष्य नहीं मिले।

कोर्ट ने कहा याची को 79 साल की आयु में विभाग को फिर निर्णय लेने के लिए भेजना उचित नहीं होगा। कहा विभाग के काम के चलते यह स्थिति पैदा हुई। जांच में आरोप साबित नहीं हुआ। इसलिए बर्खास्तगी अवैध है।

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