रायबरेली,। सोनिया गांधी की राजस्थान से राज्यसभा के लिए नामांकन के बाद प्रियंका वाड्रा गांधी की रायबरेली से चुनावी ओपनिंग होने जा रही है। रायबरेली की जनता को सोनिया गांधी के लिखे भावुक पत्र ने इसके लिए बाकायदा पिच भी तैयार कर दी है। बहुत सम्भव है कि 20 फरवरी को रायबरेली में न्याय यात्रा के दौरान रायबरेली की जनता के सामने ही इसकी घोषणा भी हो जाय।
दरअसल, सोनिया गांधी का रायबरेली से इस बार चुनाव न लड़ना तय था।2019 के बाद से ही सोनिया गांधी की अपने संसदीय क्षेत्र में सक्रियता नाम मात्र की रही है और 2020 के बाद से तो वह यहां आई ही नहीं। इसके अलावा अपनी कई चुनावी सभाओं में उन्होंने ख़ुद इसे अपना अंतिम चुनाव होने के संकेत दिये थे। दिसम्बर महीने में कांग्रेस पार्टी में संगठनात्मक बदलाव किए गए थे, जिसमें प्रियंका वाड्रा गांधी को उत्तर प्रदेश प्रभारी पद से हटाया गया था। उससे साफ़ था कि उनकी आगामी लोकसभा चुनाव में एंट्री होनी है। क्योंकि पार्टी के संविधान के अनुसार प्रभारी चुनाव नहीं लड़ सकता है। अब जब रायबरेली से प्रियंका का चुनाव लड़ना तय है,ऐसे समय में जिस तरह से सोनिया गांधी ने अपने भावुक पत्र में रायबरेली से रिश्ते और परिवार को आगे भी संभाले रहने का जनता से अनुरोध किया। वह प्रियंका के लिए पिच तैयार कर रहा है, जिसपर उनकी ओपेनिंग होनी है।
सोनिया गांधी के इस पत्र ने रायबरेली में अरसे से सुस्त पड़ी पार्टी और कार्यकर्ताओं में जोश पैदा कर दिया है और एक बार फ़िर से रायबरेली के चौक-चौराहों पर गांधी परिवार की चर्चा शुरू हो गई है। यह अलग बात है कि यहां की जनता प्रियंका वाड्रा गांधी की ओपनिंग पर कैसे रिएक्ट करती है।
प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी का कहना है कि रायबरेली का गांधी परिवार से आत्मीय रिश्ता है,जिसका उल्लेख खुद सोनिया गांधी ने किया है।रायबरेली की जनता चाहती है इस बार प्रियंका गांधी उनका प्रतिनिधित्व करें।अंशु अवस्थी के अनुसार प्रियंका के चुनाव लड़ने से पूरे प्रदेश को फ़ायदा होगा और हर कार्यकर्ता चाहता है कि वह सभी का नेतृत्व करें।
उल्लेखनीय है कि 1952 से ही रायबरेली सीट पर गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है। पहली बार इस सीट पर फिरोज गांधी सांसद बने थे। 1957 में फ़िरोज दुबारा जीते। और 1967, 1971 और 1980 में यहां से इंदिरा गांधी चुनाव जीतीं। 1980 और 1984 में फिर से नेहरू परिवार की अरुण नेहरू ने यहां चुनाव जीता। 1989 और 1991 में शीला कौल यहां से विजयी हुईं।
इसके बाद गांधी परिवार के करीबी शतीश शर्मा इस सीट पर दो बार सांसद रहे। केवल तीन बार 1977,1996 और 1998 में इस सीट पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। 2004 के बाद से लगातार सोनिया गांधी इस सीट से जीतती रहीं हैं।