Category: Election 2024

  • उप्र की रिजर्व सीटों पर क्लीन स्वीप की तैयारी में भाजपा

    उप्र की रिजर्व सीटों पर क्लीन स्वीप की तैयारी में भाजपा

    लखनऊ। उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित वर्ग के लिए रिजर्व हैं। उप्र में भाजपा ने सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। इस लक्ष्य को तय करने में रिजर्व सीटें निर्णायक बन सकती हैं। भाजपा इन सीटों पर अपना दबदबा और बढ़ाना चाहती है तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल इन सीटों में भाजपा को कमजोर करने की संभावना देख रहे हैं। 2014 और 2019 के आम चुनाव में दिखा कि भाजपा ने प्रदेश की रिजर्व सीटों पर अव्वल दर्जे का प्रदर्शन किया। भाजपा ने आम सीटों के अलावा रिजर्व सीटों पर शानदार प्रदर्शन कर यह साबित किया प्रदेश की दलित आबादी की पहली पसंद भाजपा है। 2014 में भाजपा ने प्रदेश की सभी 17 रिजर्व सीटों पर जीत दर्ज की थी।

    उल्लेखनीय है कि देश के सबसे बड़े राज्य में 21.1 प्रतिशत अनुसूचित जाति यानी दलितों की आबादी है। आजादी के बाद कांग्रेस के साथ खड़ा रहा दलित तकरीबन ढाई दशक तक बसपा के साथ रहा, लेकिन अब उसमें भाजपा गहरी सेंध लगाते दिख रही है। बसपा से खिसकते दलित वोट बैंक को सपा के साथ ही कांग्रेस भी हथियाने की कोशिश में है। सपा-कांग्रेस गठबंधन को उम्मीद है कि दलित-मुस्लिम गठजोड़ से उन्हें अबकी चुनाव में लाभ होगा।

    पहले चुनाव में भाजपा का ऐसा रहा प्रदर्शन

    6 अप्रैल 1980 को भाजपा का गठन हुआ। अपने गठन के चार साल बाद भाजपा ने देश में पहला संसदीय चुनाव लड़ा। यूपी में भाजपा ने 50 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। उसे किसी सीट पर जीत तो नहीं मिली, हालांकि उसके हिस्से में 21 लाख से ज्यादा वोट आए। इस चुनाव में भाजपा ने मोहनलालगंज, लालगंज, सैदपुर, राबर्टसगंज, घाटमपुर, हाथरस और हरिद्वार सात रिर्जव सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। इनमें तीन सीटों पर भाजपा चौथे और चार सीटों पर तीसरे स्थान पर रही। सभी रिजर्व सीटें कांग्रेस ने जीती थी।

    चुनाव दर चुनाव बेहतर हुआ प्रदर्शन

    1989 के आम चुनाव में भाजपा ने यूपी की 18 रिजर्व सीटों सैदपुर और राबर्टसगंज में जीत दर्ज की। जनता दल ने 11, कांग्रेस ने 4 और बसपा ने 1 सीट पर जीत दर्ज की। 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदर्शन सुधारा और बिजनौर, हरदोई, मोहनलालगंज, बस्ती, बांसगांव, फिरोजाबाद, हाथरस और हरिद्वार आठ सीटें जीती। इस चुनाव में कांग्रेस और जनता पार्टी के हिस्से में 1-1 और जनता पार्टी के खाते में शेष 8 सीटें आई। इस चुनाव में स्वयं को दलित वोटों की ठेकेदार समझने वाली बसपा के हाथ खाली ही रहे। 1996 के आम चुनाव में भाजपा ने अब तक का सबसे उम्दा प्रदर्शन करते हुए 18 रिजर्व सीटों में से 14 पर विजय पताका फहराई। बसपा और सपा के हिस्से में दो-दो सीटें आई। 1998 के चुनाव में भाजपा ने 11 और 1999 में 7 सीटों पर जीत दर्ज की। 1999 के चुनाव में बसपा ने 6, सपा ने 4 और अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस ने 1 सीट जीती थी।

    2004 और 2009 में फीका रहा प्रदर्शन

    2004 के आम चुनाव में भाजपा 17 रिजर्व सीटों में से 3 पर ही जीत सकी। सपा को 7, बसपा को 5 कांग्रेस और रालोद को 1-1 सीट मिली। 2009 के आम चुनाव में भाजपा 2 सीटें ही जीत पाई। इस चुनाव में सपा को 9, बसपा को 3 और रालोद को 1 सीट मिली।

    2014 में बदल गया नजारा

    2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया। भाजपा ने 71 और अपना दल ने 2 कुल जमा 73 सीटों पर जीत दर्ज कराई। इस चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की सभी 17 रिजर्व सुरक्षित सीटों पर भारी अंतर से जीत दर्ज की। 2014 में सपा और रालोद का गठबंधन था। बसपा और कांग्रेस अकेले मैदान में थी। बसपा के खाते में शून्य सीटें आई। सपा 5 और कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई।

    2019 में रिजर्व सीटों पर अव्वल प्रदर्शन

    आम चुनाव 2019 में भाजपा और अपना दल ने 64 सीटें जीती। 62 सीटों पर भाजपा और 2 पर अपना दल ने सफलता हासिल की। हालांकि इस चुनाव में कुल 17 रिजर्व सीटों में 15 अपने कब्जे में रखी। भाजपा ने 14 और 1 सीट अपना दल ने जीती। बसपा को लालगंज और नगीना मात्र दो सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस, सपा और रालोद के हाथ खाली ही रहे।

    2014 का प्रदर्शन दोहराने की तैयारी में भाजपा

    इस बार भाजपा ने प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में वो रिजर्व सीटों पर 2014 का प्रदर्शन दोहराकर क्लीन स्वीप की तैयारी में है। दलितों को अपने पाले में लाने और लगातार उनके हितों की योजनाएं चलाने वाली मोदी सरकार ने अहम पदों पर दलितों को प्राथमिकता भी दी। नतीजा यह रहा कि रिजर्व सीटों पर बसपा सहित दूसरे दलों की पकड़ ढीली होती जा रही है। भाजपा के पूरी शिद्दत से दलित वोटरों में गहरी सेंध लगाने की कोशिश का नतीजा रहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा एक भी सुरक्षित सीट पर जीत दर्ज नहीं करा सकी। सुरक्षित सीटों पर जीत पक्की करने के लिए अनुसूचित जाति महासम्मेलन, दलित सम्मेलन और दलित बस्तियों में भोजन के जरिए यह बताने में लगी है कि मोदी-योगी की सरकार ही अनुसूचित वर्ग का पूरा ध्यान रख रही हैं। कांग्रेस ने तो आंबेडकर के नाम पर अनुसूचित वर्ग की उपेक्षा की है। लोगों का प्रयोग सिर्फ वोट और सत्ता हथियाने के लिए किया गया।

    विपक्ष भी तैयारी में जुटा

    उत्तर प्रदेश की रिजर्व सीटों पर भाजपा की लगातार बढ़त को रोकने के लिए सपा, कांग्रेस और बसपा भी दलितों को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। सपा को पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक फार्मूले पर पूरा यकीन है। दलितों को अपने पाले में लाने के लिए अखिलेश यादव ने दलितों के श्रद्धा के केंद्र महू जाकर बाबा साहब को श्रद्धांजलि दी, वहीं रायबरेली में बसपा संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का भी अनावरण किया है। दलितों को सपा से जोड़ने के लिए अखिलेश ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर वाहिनी भी बनाई है। कांग्रेस भी दलितों को रिझाने में लगी है। मायावती स्वयं को दलितों का सबसे बड़ा पैरोकार मानती है। बसपा अपने कोर वोट बैंक को बिखरने से रोकने की रणनीति पर फोकस कर रही है।

  • वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी के मुकाबले कांग्रेस ने अजय राय पर फिर लगाया दांव

    वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी के मुकाबले कांग्रेस ने अजय राय पर फिर लगाया दांव

    लगातार तीसरी बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चुनावी जंग में

    वाराणसी। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस नेतृत्व ने वाराणसी संसदीय सीट पर अपने उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अजय राय को फिर उतारा है। प्रदेश के पूर्व मंत्री अजय राय लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (भाजपा के उम्मीदवार) के विजय रथ को रोकने के लिए सियासी दमखम दिखायेंगे। पिछले दो चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने सियासी जंग में तीसरे स्थान पर रहे। अजय राय की जमानत भी नहीं बच पाई थी।

    खास बात यह रही कि दोनों चुनाव में अजय राय कभी भी मुख्य मुकाबले में नहीं दिखे। पहली बार वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (भाजपा उम्मीदवार) के सामने कांग्रेस ने अजय राय को उतारा था। चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल दूसरे और अजय राय तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने अजय राय को पार्टी का उम्मीदवार बनाया। चुनाव में सपा बसपा गठबंधन की शालिनी यादव दूसरे और अजय राय तीसरे स्थान पर रहे।

    गौरतलब हो कि अजय राय ने अपने सियासी सफर की शुरुआत भाजपा से ही की थी। वर्ष 1996 से लेकर वह 2007 तक वह भाजपा के टिकट से ही लगातार तीन बार विधायक बने। अजय राय ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से टिकट मांगा तो तब भाजपा के कद्दावर नेता डॉ मुरली मनोहर जोशी को टिकट मिल गया। इससे नाराज अजय राय ने डॉ जोशी का खुलकर विरोध किया था और पार्टी से अलग हो गए। तब चुनाव में डॉ जोशी ने जीत हासिल की। उधर, 2009 में अजय राय निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पिंडरा विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में लड़े और जीत हासिल की। इसके बाद 2012 में वे कांग्रेस से जुड़े और पिंडरा सीट से जीत हासिल की। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में पिंडरा से ही अजय राय को भाजपा के डॉ अवधेश सिंह ने करारी शिकस्त दी।

    वाराणसी संसदीय सीट से अब तक हुए सांसद

    पहले लोकसभा चुनाव 1952 में वाराणसी सीट से कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रघुनाथ सिंह को उतारा था। तब रघुनाथ सिंह ने लगातार तीन बार-1952, 1957 व 1962 में जीत दर्ज की थी। इसके बाद बाद 1967 में सीपीएम प्रत्याशी सत्यनारायण सिंह ने कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त कर रघुनाथ सिंह को धुल चटा दिया था। तब सीपीएम के सत्यनारायण सिंह को 138789 मत मिला था। सत्यनारायण सिंह से जब काशीवासियों का मोहभंग हुआ तो 1971 में कांग्रेस के राजाराम शास्त्री को फिर सेवा का मौका दिया। तब पाकिस्तान को जंग में करारी शिकस्त देकर उसे दो टुकड़ों में बांट देने के बाद पूरे देश में कांग्रेस नेतृत्व इंदिरा गांधी की प्रचंड लहर भी चल रही थी। इसके बाद देश में आपातकाल का दौर आया। इससे काशी भी अछूती नहीं रही।

    आपातकाल के बाद हुए संसदीय चुनाव में काशी ने संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी चन्द्रशेखर(पूर्व प्रधानमंत्री )को जीताकर राजाराम शास्त्री को करारी शिकस्त खाने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन कुछ ही समय में सरकार और प्रत्याशी से मोहभंग होने के बाद काशी ने वर्ष 1980 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस के धुरंधर स्थानीय नेता पं.कमलापति त्रिपाठी को सिर माथे पर बिठा लिया। पंडित जी को कुल 129063 मत और विपक्षी दल के स्थानीय कद्दावर समाजवादी नेता राजनारायण को कुल 104328 मत मिला। इसके बाद जनता ने 1984 में फिर कांग्रेस पर भरोसा जता स्थानीय प्रत्याशी श्यामलाल यादव को विजेता बनाया। यादव को कुल 153076 मत और सीपीआई के दिग्गज कामरेड ऊदल को 58664 मत मिला था। इसके बाद आया बोफोर्स घोटाले का दौर काशी ने भी इससे नाराज होकर सत्ता के विपरीत चलने का मन बना लिया। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता दल के प्रत्याशी और काशी के लाल लालबहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री पर बाबा की नगरी का प्यार बरसा। अनिल शास्त्री ने कुल 268196 मत पाकर कांग्रेस के श्यामलाल यादव को पटखनी दी।

    इसके बाद आया राममंदिर निर्माण के लिए भाजपा के रथयात्रा और बाबरी मस्जिद विध्वन्स का दौर। काशी पर भी भगवा रंग चटख होने लगा। 1991 में भाजपा के प्रत्याशी और पूर्व डीजीपी श्रीशचन्द्र दीक्षित को काशी ने सिर माथे पर बैठाया। दीक्षित को कुल 186333 मत और उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी सीपीएम के राजकिशोर को 149894 मत मिला था। इसके बाद वर्ष 1996 में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल पर फिर जनता ने भरोसा जताया।

    1998 में दोबारा और 1999 में तीसरी बार शंकर प्रसाद जायसवाल को काशी ने विजयश्री का वरण कराया। तीन बार लगातार सेवा का मौका पाने के बाद भी जनआकांक्षा पर खरे न उतरने पर शंकर प्रसाद जायसवाल को 2004 में जनता ने पटखनी दे दी। और कांग्रेस के स्थानीय दिग्गज छात्रनेता डा.राजेश मिश्र पर जमकर प्यार बरसा उन्हें विजेता बना दिया। इसके बाद भाजपा के दिग्गज नेता डा. मुरली मनोहर जोशी ने 2009 के चुनाव में यह सीट कांग्रेस से छिन ली। काशी की जनता ने भाजपा के आधार स्तम्भ नेता पर भरोसा जता कुल 203122 मत देकर उन्हें विजयश्री का वरण कराया।

    इसके बाद आया वर्ष 2014 का दौर तत्कालीन केन्द्र सरकार के नीतियों से खफा काशी ने फिर धारा से विपरित चलने का निर्णय लिया। तब पूरे देश के राजनीतिक क्षितिज पर धूमकेतू की तरह उभरे भाजपा संसदीय दल के नेता नरेन्द्र मोदी पर भरपूर प्यार लूटा काशी ने उन्हें रिकार्ड मतों से जीता इतिहास रच दिया। इस चुनाव में आप के अरविन्द केजरीवाल को छोड़ सपा बसपा कांग्रेस के प्रत्याशी की जमानत भी नहीं बच पाई।

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तब भाजपा के प्रत्याशी को कुल 581022 मत और दूसरे स्थान पर रहे आप के अरविन्द केजरीवाल को 209238 मत मिला था। चुनाव में कांग्रेस के अजय राय को 75614, बसपा के सीए विजय प्रकाश को 60579 तथा सपा के कैलाश चौरसिया को 45291 मत मिला था। इसके बाद वर्ष 2019 में फिर काशी की जनता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रिकार्ड मतों से जिताया। इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने 6,74,664 मत प्राप्त कर सपा की शालिनी यादव को 4,79,505 मतों से हराया। शालिनी यादव को कुल 1,95,159 मत मिला था। तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के अजय राय को 1,52,548 मत मिला था। अब तक के बनारस के संसदीय सीट के इतिहास में भाजपा सात बार और कांग्रेस ने पांच बार जीत दर्ज की हैं।

  • कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए मप्र की 12 सीटों पर घोषित किए उम्मीदवार

    कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए मप्र की 12 सीटों पर घोषित किए उम्मीदवार

    – राजगढ़ से 33 साल बाद लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे दिग्विजय सिंह

    – रतलाम से कांतिलाल भूरिया और भोपाल से अरुण श्रीवास्तव को बनाया उम्मीदवार

    भोपाल, । लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश की 12 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। भोपाल से अरुण श्रीवास्तव और राजगढ़ से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है। वहीं, रतलाम लोकसभा सीट से कांतिलाल भूरिया को टिकट दिया गया है। कांग्रेस अब तक मप्र की 29 सीटों में 22 पर अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है जबकि सात सीटों को अभी होल्ड पर रखा है। कांग्रेस ने अब तक एक महिला को टिकट दिया है जबकि पांच वर्तमान विधायक, एक सांसद और एक राज्य सभा सांसद को प्रत्याशी बनाया है।

    अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने शनिवार देर रात लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की चौथी सूची जारी की है। इसमें 45 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया गया है। इस सूची में मध्य प्रदेश की 12 सीटों के लिए उम्मीदवार शामिल हैं। राजगढ़ सीट से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है। राजगढ़ दिग्विजय सिंह का गढ़ माना जाता है और 33 साल बाद इस सीट से वे लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें भोपाल से मैदान में उतारा था लेकिन भाजपा उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने उन्हें बुरी तरह पराजित किया था।

    कांग्रेस ने रतलाम सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया को उतारा है। इंदौर से अक्षय बम, बालाघाट से सम्राट सारस्वत और जबलपुर से दिनेश यादव को टिकट दिया गया। उज्जैन के तराना से विधायक महेश परमार, मंदसौर से पूर्व विधायक दिलीप सिंह गुर्जर को प्रत्याशी बनाया गया है।

    सागर से चंद्रभूषण सिंह गुड्डू राजा बुंदेला को प्रत्याशी बनाया है। वह विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस में शामिल हुए थे। वह खुरई से चुनाव लड़ने की तैयारी में थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया था। वहीं, रीवा से नीलम अभय मिश्रा को चुनाव मैदान में उतारा गया है। नीलम सेमरिया से कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा की धर्मपत्नी हैं। शहडोल से फुंदेलाल सिंह मार्को प्रत्याशी होंगे, जो पुष्पराजगढ़ से विधायक हैं। वहीं होशंगाबाद से तेंदूखेड़ा के पूर्व विधायक संजय शर्मा को मैदान में उतारा है।

    भोपाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने अरुण श्रीवास्तव को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का समर्थक माना जाता है। मध्यप्रदेश कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक अरुण को पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने कांग्रेस नेता दिग्विजय से चर्चा के बाद टिकट दिया है। वह भोपाल जिला ग्रामीण कांग्रेस अध्यक्ष हैं।

    सूत्रों का कहना है कि गुना लोकसभा सीट को लेकर मामला उलझा हुआ है। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने यहां से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है जबकि स्थानीय स्तर पर उनके नाम को लेकर सहमति नहीं है जिसके चलते अभी इस सीट के प्रत्याशी को लेकर निर्णय नहीं हो पाया है। वहीं, मुरैना, ग्वालियर, दमोह, खंडवा और विदिशा के प्रत्याशियों को लेकर अभी मंथन किया जा रहा है।

    पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए दो विधायकों पर दांव लगाया है। पुष्पराजगढ़ से फुंदेलाल सिंह मार्को और तराना से महेश परमार अभी विधायक हैं। पहली सूची में फूल सिंह बरैया, सिद्धार्थ कुशवाहा और ओमकार सिंह मरकाम को टिकट दिया गया था।

  • मैनपुरी में डिंपल की बैठक से कांग्रेसियों के गायब होने पर गठबंधन पर गरम है चर्चाओं को बाजार

    मैनपुरी में डिंपल की बैठक से कांग्रेसियों के गायब होने पर गठबंधन पर गरम है चर्चाओं को बाजार


    प्रयागराज/ मैनपुरी।यूपी में सपा के साथ कांग्रेस का गठबंधन मैनपूरी के सपा उम्मीदवार डिंपल यादव की बैठक से नदारद होने के बाद सवालों में आ गया है। मैनपुरी लोकसभा सीट सपा के खाते में है। डिंपल की बैठक में कांग्रेसियों के गायब होने के बाद से राजनीतिक हलके में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन पर चर्चाओं का बाजार गरम हो गया है। बताते चले कि यूपी में कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन है।

    राजनीतिक गलियारों की बात करें तो वर्ष 2004 के चुनाव में कांग्रेस ने मैनपुरी में अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा था। उस समय सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव के सामने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सुमन चौहान ने चुनाव लड़ा था। उनको चौथे स्थान पर रहकर संतोष करना पड़ा था। बसपा प्रत्याशी अशोक शाक्य ने दूसरा और भाजपा प्रत्याशी रामबाबू कुशवाहा ने तीसरा स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद से कांग्रेस ने मैनपुरी लोकसभा सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है।


    वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा के खाते में मैनपुरी लोकसभा सीट आई है। सपा ने डिंपल यादव को प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है। प्रदेश में सपा से गठबंधन होने के कारण कांग्रेस का मैनपुरी लोकसभा सीट पर प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं होगा। सपा प्रत्याशी ने कार्यकर्ता बैठकें करके अपना जन संपर्क शुरू कर दिया है। सपा की बैठकों में कांग्रेस कार्यकर्ता नजर नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस की गतिविधियां पार्टी कार्यालय पर होने वाली बैठकों तक ही सीमित हो गई हैं।

    कांग्रेस जिलाध्यक्ष विनीता शाक्य ने बताया कि प्रदेश में कांग्रेस का सपा से गठबंधन है। इसी के चलते लोकसभा सीट पर कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं है। जिले में कांग्रेस के पदाधिकारी और कार्यकर्ता शीघ्र ही सपा प्रत्याशी के सर्मथन में अभियान चलाकर जन संपर्क शुरू करेंगे।

  • लोकसभा चुनाव: लखनऊ बना कमल का साथी, पसंद नहीं आए साइकिल और हाथी

    लोकसभा चुनाव: लखनऊ बना कमल का साथी, पसंद नहीं आए साइकिल और हाथी

    लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ किसी जमाने में कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। सपा और बसपा के उभार के बाद प्रदेश में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन लगातार सिकुड़ती गई। हालांकि प्रदेश की राजनीति में अग्रणी भूमिका निभाने के बावजूद सपा और बसपा लखनऊ संसदीय सीट जीतने में कामयाब नहीं हुईं। कांग्रेस ने लखनऊ सीट अंतिम बार 1984 में जीती थी।

    पिछले तीन दशकों से लखनऊ सीट पर भाजपा का कब्जा है। लखनऊ भाजपा का वो अभेद्य दुर्ग है जिसे 1991 से 2019 तक हुए सात चुनाव में विपक्ष विजय पताका फहरा नहीं पाया। वर्ष 2007 में बसपा ने और 2012 में सपा ने यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई, बावजूद इसके सपा और बसपा लखनऊ लोकसभा सीट जीतने का ख्वाब पूरा नहीं कर पाईं।

    लखनऊ में हाथी की चाल सुस्त ही रही-

    बसपा को प्रदेश की सत्ता चार बार संभालने का मौका मिला। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला हिट रहा। बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। विधानसभा चुनाव के दो साल बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के खाते में 20 सीटें ही आईं। सपा ने 23, भाजपा ने 10, कांग्रेस ने 21, रालोद ने 5 और 1 सीट पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में बसपा ने लखनऊ सीट से पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र डॉ.अलिखेश दास को मैदान में उतारा था। अखिलेश दास ने जीत के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई। लखनऊवासियों ने जीत का सेहरा भाजपा प्रत्याशी लालजी टंडन के सिर पर बांधा। कांग्रेस प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी दूसरे और बसपा प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे। ये वो समय था जब प्रदेश में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार थी।

    वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी जगमोहन सिंह वर्मा लखनऊ सीट पर चौथे स्थान पर रहे। ये चुनाव जनता दल के मंदाता सिंह ने जीता था। 1991 के चुनाव में बसपा के बलबीर सिंह सलूजा पांचवें स्थान पर रहे। 1996 में वेद प्रकाश ग्रोवर तीसरे, 1998 में डा. दाऊ जी गुप्ता तीसरे, 1999 में इजहारूल हक और 2004 में नसीर अली सिद्दीकी चौथे स्थान पर रहे। वर्ष 1991 से 2004 तक भाजपा प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी ने लगातार लखनऊ सीट पर जीत दर्ज की। वर्ष 2004 के चुनाव में चौथे स्थान पर रहे बसपा प्रत्याशी नसीर अली सिद्दीकी को तो निर्दलीय प्रत्याशी राम जेठमलानी से भी कम वोट हासिल हुए थे। जेठमलानी तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 2014 के चुनाव में बसपा उम्मीदवार नकुल दूबे तीसरे स्थान पर रहे। चुनाव भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह ने जीता। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन था।

    सपा की साइकिल लखनऊ में दौड़ नहीं पाई

    बसपा की तरह सपा भी अब तक लखनऊ संसदीय सीट जीत नहीं पाई। वर्ष 1996 के चुनाव में सपा प्रत्याशी राज बब्बर दूसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1998 में मुजफ्फर अली दूसरे, 1999 में भगवती सिंह तीसरे और 2004 में डॉ. मधु गुप्ता दूसरे स्थान पर रहे। ये सारे चुनाव भाजपा प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी ने भारी अंतर से जीते। 2009 के चुनाव में सपा प्रत्याशी नफीसा अली सोढ़ी चौथे स्थान पर रहीं। ये चुनाव भाजपा प्रत्याशी लालजी टंडन ने जीता। बसपा तीसरे स्थान पर थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने शानदार जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। विधानसभा चुनाव के दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में सपा समेत विपक्ष का सूपड़ा लगभग साफ हो गया। सपा के हिस्से में परिवार की पांच सीटें ही आईं। 2014 में सपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्र चौथे और 2019 में पूनम सिन्हा दूसरे स्थान पर रहीं। ये दोनों चुनाव भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह ने बड़े अंतर से जीते।

    लखनऊ का जातीय समीकरण-

    लखनऊ लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा सीटें आती हैं। ये सीटें- लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तरी, लखनऊ पूर्वी, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट हैं। लखनऊ के जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां करीब 71 फीसदी आबादी हिंदू है। इसमें से भी 18 फीसदी आबादी राजपूत और ब्राह्मण हैं। ओबीसी 28 फीसदी और मुस्लिम 18 फीसदी हैं। साल 2022 में हुए चुनाव में पांच विधानसभा सीटों में से तीन पर भाजपा जीती थी।

    राजनाथ सिंह तीसरी बार मैदान में-

    भाजपा की ओर से तीसरी बार राजनाथ सिंह मैदान में हैं। इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन है। गठबंधन के सीट बंटवारे में लखनऊ सीट सपा के खाते में है। सपा ने लखनऊ मध्य विधानसभा सीट के विधायक रविदास मेहरोत्रा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। बसपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में राजनाथ सिंह 5,61,106 (54.27 फीसदी) वोट पाकर विजयी हुए। जीत का अंतर 2 लाख 72 हजार से ज्यादा था। कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी 2,88,357 (27.89 फीसदी) वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहीं। तीसरे स्थान पर रहे नकुल दूबे को 64,449 (6.23 फीसदी) और चौथे स्थान पर रहे सपा प्रत्याशी अभिषेक मिश्र को 56,771 (5.49 फीसदी) वोट मिले।

    पिछले चुनाव में राजनाथ को 6,33,026 (56.70 फीसदी) वोट मिले। दूसरे स्थान रही सपा प्रत्याशी पूनम सिन्हा के खाते में 2,85,724 (25.59 फीसदी) वोट आए। जीत का अंतर लगभग साढे़ तीन लाख वोट का था। कांग्रेस प्रत्याशी आचार्य प्रमोद कृष्णन 1,80,011 (16.12 फीसदी) वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन है बावजूद इसके भाजपा जीत को लेकर आश्वस्त है। हालांकि इस बार उसका फोकस जीत के अंतर को बढ़ाने पर है।

  • लोकसभा चुनाव : बिजनौर से निर्विरोध निर्वाचित हो गए थे कांग्रेस के रामदयाल

    लोकसभा चुनाव : बिजनौर से निर्विरोध निर्वाचित हो गए थे कांग्रेस के रामदयाल

    मेरठ,। अक्सर चुनाव जीतने के लिए राजनैतिक दलों के महारथियों के बीच कांटे की टक्कर होती है, लेकिन 1974 के लोकसभा चुनाव में बिजनौर लोकसभा सीट पर टक्कर देने के लिए कोई उम्मीदवार ही नहीं उतरा और कांग्रेस के रामदयाल निर्विरोध निर्वाचित हो गए। इसी तरह से बिजनौर सीट पर 1962 में प्रकाशवीर त्यागी शास्त्री ने निर्दलीय ही जीत का परचम लहरा दिया था।

    बिजनौर लोकसभा सीट की गिनती पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण सीट के रूप में होती है। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवारों को सात बार जीत हासिल हुई तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार चार बार सांसद बनने में कामयाब हुए हैं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और जनता पार्टी को दो-दो बार, समाजवादी पार्टी (सपा) एक बार तो एक बार निर्दलीय उम्मीदवार को कामयाबी मिली है। इस सीट पर 1974 में ऐसा वाकया हुआ, जो राजनीति में अपवाद स्वरूप ही दिखाई देता है। कांग्रेस के उम्मीदवार रामदयाल के सामने नामांकन करने के लिए कोई उम्मीदवार ही नहीं उतरा और उन्हें निर्विरोध ही निर्वाचित घोषित कर दिया। 1962 में बिजनौर की जनता ने निर्दलीय उम्मीदवार को चुनाव जिताकर संसद में भेजा। आर्य समाज के बड़े विद्वान प्रकाशवीर त्यागी शास्त्री ने उस समय निर्दलीय चुनाव जीतकर सभी को चौंका दिया था। 1967 में प्रकाशवीर ने गाजियाबाद सीट पर भी दिग्गज नेता बीपी मौर्य को हराकर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत कर अपना परचम लहराया।

    मीरा कुमार ने रामविलास पासवान को दी थी पटखनी

    बिजनौर लोकसभा सीट 1985 में सुरक्षित सीट थी। 1984 के आम चुनावों में कांग्रेस के गिरधारी लाल यहां से सांसद चुने गए। उनके असमय निधन के कारण 1985 के उपचुनाव में इस सीट से दिग्गजों ने भाग्य आजमाया। कांग्रेस नेत्री मीरा कुमार के सामने रामविलास पासवान जैसी हस्ती चुनाव लड़ी। इस रोचक मुकाबले में मीरा कुमार ने रामविलास पासवान को करारी शिकस्त दी। 1989 में इस सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) नेत्री मायावती चुनाव जीतकर संसद में पहुंची थी, लेकिन 1991 में हुए चुनाव में मायावती को भाजपा के मंगलराम प्रेमी के हाथ करारी हार झेलनी पड़ी।

    रालोद-भाजपा के चंदन चौहान चुनावी मैदान में

    बिजनौर लोकसभा सीट मेरठ, बिजनौर और मुजफ्फरनगर जनपद में फैली हुई है। बिजनौर लोकसभा सीट में पांच विधानसभा आती है। इसमें मुजफ्फरनगर जनपद की पुरकाजी सुरक्षित और मीरापुर सीट है तो बिजनौर जनपद की बिजनौर सदर सीट व चांदपुर और मेरठ जनपद की हस्तिनापुर सुरक्षित सीट शामिल हैं। इनमें से पुरकाजी और मीरापुर से राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) विधायक है। हस्तिनापुर और बिजनौर सदर से भारतीय जनता पार्टी विधायक है, जबकि चांदपुर सीट पर समाजवादी पार्टी के स्वामी ओमवेश का कब्जा है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा-रालोद गठबंधन से मीरापुर विधायक चंदन चौहान चुनाव मैदान में है। बसपा ने विजेंद्र सिंह पर दांव खेला हुआ है।

    बिजनौर लोकसभा से चुनाव जीतने वाले सांसद

    1952 में कांग्रेस के स्वामी रामानंद शास्त्री सांसद चुने गए। 1957 में कांग्रेस के अब्दुल लतीफ गांधी, 1962 में निर्दलीय प्रकाशवीर त्यागी शास्त्री, 1967 और 1971 में कांग्रेस के स्वामी रामानंद शास्त्री, 1974 में कांग्रेस के रामदयाल निर्विरोध चुने गए। 1977 में जनता पार्टी के माहीलाल, 1980 में जनता पार्टी के मंगलराम प्रेमी, 1984 में कांग्रेस के गिरधारी लाल, 1985 में कांग्रेस की मीरा कुमार, 1989 में बसपा की मायावती, 1991 और 1996 में भाजपा के मंगलराम प्रेमी, 1998 में सपा की ओमवती देवी, 1999 में भाजपा के शीशराम सिंह रवि, 2004 में रालोद के मुंशीराम पाल, 2009 में बिजनौर सामान्य सीट हो गई तो रालोद के संजय चौहान, 2014 में भाजपा के भारतेंद्र सिंह और 2019 में बसपा के मलूक नागर चुनाव जीतकर सांसद बने।

  • ‘विकसित भारत’ के संदेशों को साझा करना तुरंत बंद करेंः चुनाव आयोग

    ‘विकसित भारत’ के संदेशों को साझा करना तुरंत बंद करेंः चुनाव आयोग

    नई दिल्ली,। चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह ‘विकसित भारत’ के संदेशों को वाट्सऐप पर साझा करना तुरंत बंद करे।

    चुनाव आयोग ने गुरुवार को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव को आदर्श आचार संहिता के दौरान वाट्सऐप पर ‘विकसित भारत’ के संदेशों की डिलीवरी तुरंत रोकने के लिए पत्र लिखा है। आयोग ने मंत्रालय से इस मामले पर तत्काल अनुपालन रिपोर्ट भी मांगी है।

    पत्र में कहा गया है कि आयोग को विभिन्न क्षेत्रों से शिकायतें मिली हैं कि आम चुनाव 2024 की घोषणा और आदर्श आचार संहिता के लागू होने के बावजूद नागरिकों के फोन पर अभी भी ऐसे संदेश भेजे जा रहे हैं। इसलिए आपको यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि चुनाव आचार संहिता के दौरान वाट्सऐप संदेशों की आगे कोई डिलीवरी न हो। इस संबंध में अनुपालन रिपोर्ट तुरंत भेजी जाए।

    उल्लेखनीय है कि मंत्रालय ने इससे पहले आयोग को सूचित किया था कि ये संदेश आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले भेजे गए थे, लेकिन सिस्टम आर्किटेक्चर और नेटवर्क सीमाओं के कारण यह संभव है कि कुछ संदेशों की डिलीवरी में देरी हुई हो।

  • स्टेट बैंक ने इलेक्टोरल बांड से जुड़ी सारी जानकारी चुनाव आयोग को मुहैया कराई

    स्टेट बैंक ने इलेक्टोरल बांड से जुड़ी सारी जानकारी चुनाव आयोग को मुहैया कराई

    – सुप्रीम कोर्ट में स्टेट बैंक के चेयरमैन दिनेश कुमार खारा ने दिया हलफनामा

    नई दिल्ली। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक इलेक्टोरल बांड से जुड़ी सारी जानकारी आज चुनाव आयोग को उपलब्ध करा दी गई है।

    स्टेट बैंक के चेयरमैन दिनेश कुमार खारा ने कहा कि इस जानकारी में इलेक्टोरल बांड का नंबर, इलेक्टोरल बांड की कीमत, पार्टी का नाम, पार्टी के बैक अकाउंट की आखिरी चार डिजिट नंबर, भुनाए गए बांड की कीमत और नंबर शामिल है। स्टेट बैंक ने हलफनामे में कहा है कि साइबर सुरक्षा के मद्देनजर राजनीतिक पार्टी का पूरा बैंक खाता नंबर, पार्टी और बांड खरीदने वाले की केवाईसी डिटेल्स सार्वजनिक नहीं की गई है। इस जानकारी के अलावा कोई और जानकारी स्टेट बैंक ने अपने पास नहीं रखी है।

    सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च को स्टेट बैंक को खरीदे गए और कैश कराए गए बांड नंबरों का पूरा ब्यौरा चुनाव आयोग को देने और चुनाव आयोग को उसे प्रकाशित करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक के चेयरमैन से कहा था कि भविष्य में किसी विवाद की गुंजाइश को खत्म करने के लिए वो 21 मार्च को 5 बजे तक कोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ करें कि उनके पास उपलब्ध सारी जानकारी चुनाव आयोग को दे दी गई है। निर्वाचन आयोग स्टेट बैंक से जानकारी मिलते ही उसे तुरंत अपनी वेबसाइट पर डालेगा।

    इससे पहले 16 मार्च को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने इलेक्टोरल बांड मामले में सीलबंद डाटा निर्वाचन आयोग को सौंप दिया था। इस डाटा में 2019 और नवंबर, 2023 में दिए गए इलेक्टोरल बांड का ब्यौरा है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि वो 2019 और नवंबर 2023 के डाटा की कॉपी कर उसकी मूल प्रति निर्वाचन आयोग को सौंप दे।

    कोर्ट ने 15 मार्च को निर्वाचन आयोग की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सवाल उठाया था कि स्टेट बैंक की ओर से निर्वाचन आयोग को दिए गए आंकड़ों में बांड नंबर का उल्लेख नहीं किया गया है, जबकि इसका साफ आदेश था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने स्टेट बैंक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

  • लोकसभा चुनाव : बड़ी जीत के बाद भी इंदिरा गांधी का रायबरेली से हुआ था मोहभंग

    लोकसभा चुनाव : बड़ी जीत के बाद भी इंदिरा गांधी का रायबरेली से हुआ था मोहभंग

    रायबरेली। अरसे से कांग्रेस की गढ़ रही रायबरेली लोकसभा सीट पर मुकाबले हमेशा रोचक ही रहे हैं, कभी यहां इंदिरा गांधी को हार मिली तो कभी बम्पर जीत के बाद भी उनका यहां से मोहभंग हो गया। रायबरेली के चुनाव में भारतीय राजनीति की दो दिग्गज़ महिलाओं के बीच हुई चुनावी जंग आज भी चुनावी इतिहास में दर्ज है। इसकी चर्चा हमेशा होती रहती है।

    वर्ष 1980 में रायबरेली से इंदिरा गांधी चुनाव लड़ रही थीं। इंदिरा गांधी को टक्कर देने के लिए जनता पार्टी की ओर से रणनीति तैयार की जा रही थी, लेकिन कोई भी यहां से चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं था। ऐसे में खुद ग्वालियर की राजमाता और दिग्गज़ नेत्री विजयाराजे सिंंधिया ने रायबरेली से इंदिरा गांधी को चुनौती देने का मन बनाया। जनता पार्टी ने उन्हें टिकट देते हुए मैदान में उतार दिया। खुद इंदिरा गांधी भी हैरान थीं। इंदिरा लहर तो थी लेकिन राजमाता का आकर्षण जनता में बहुत था। उनकी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही थी।

    पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पांडे कहते हैं कि गांव-गांव में राजमाता के प्रति बड़ी श्रद्धा थी,आमजन विशेषकर महिलाओं में पैर छूने की होड़ लगी रहती थी। बिना किसी बंदोबस्त के ही मीटिंग्स में खूब भीड़ होती थी। राजमाता के जनता से मिलने का तरीका भी अलग था। बावजूद इसके जनता पार्टी के पास न तो मजबूत संगठन था और न ही संसाधन। इस चुनाव में इंदिरा गांधी भारी मतों से जीत गईं। उन्होंने विजयाराजे सिंधिया को 1,73,654 वोटों से हराया। राजमाता विजयाराजे सिंधिया को मात्र 50,249 वोट ही मिल सके। हालांकि इस चुनाव में हारने के बाद भी राजमाता का जुड़ाव रायबरेली से बना रहा और वह यहां के कार्यकर्ताओं से जुड़ी रहीं।

    वर्ष 1980 का रायबरेली से चुनाव इंदिरा गांधी के लिए अंतिम चुनाव रहा, यहां से भारी मतों से जीत दर्ज करने के बाद भी उनका यहां से मोहभंग हो गया और उन्होंने रायबरेली की अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। दरअसल, इंदिरा ने आंध्र प्रदेश की मेंडक सीट से भी चुनाव लड़ा था। यहां भी उनकी जीत हुई थी। उन्होंने मेंडक सीट को बरकरार रखा, जबकि रायबरेली से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1980 में इस सीट पर उपचुनाव में अरुण नेहरू समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र को हराकर सांसद बने।

  • लोकसभा चुनाव : मेरठ और गाजियाबाद में भाजपा से अरुण गोविल और कुमार विश्वास की चर्चा

    लोकसभा चुनाव : मेरठ और गाजियाबाद में भाजपा से अरुण गोविल और कुमार विश्वास की चर्चा

    मेरठ। मेरठ लोकसभा सीट पर दूसरे चरण में लोकसभा चुनाव होना है। अभी तक भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। मेरठ और गाजियाबाद से भाजपा से अरुण गोविल और कुमार विश्वास को टिकट मिलने की चर्चा चल रही है, तो भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच बाहरी और स्थानीय उम्मीदवारों को ही टिकट देने की मांग उठ रही है। ऐसे में दोनों ही सीटों पर भाजपा स्थानीय दावेदारों पर ही दांव खेल सकती है।

    मेरठ और गाजियाबाद लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार तय करने में भाजपा को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। मेरठ से वर्तमान सांसद राजेंद्र अग्रवाल जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं और इस बार भी टिकट की रेस में सबसे आगे माने जा रहे हैं। इसके साथ ही कवि कुमार विश्वास और रामायण में श्रीराम की भूमिका निभा चुके अभिनेता अरुण गोविल का नाम भी टिकट के दावेदारों के रूप में लिया जा रहा है। मेरठ से भाजपा का टिकट चाहने वालों में कैंट विधायक अमित अग्रवाल, राज्यसभा सदस्य डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी, विनीत अग्रवाल शारदा, संजीव जैन सिक्का, डॉ. विकास अग्रवाल की दावेदारी भी चल रही है। अभी तक टिकट घोषित नहीं होने से भाजपा कार्यकर्ताओं में भी असमंजस की स्थिति है। कार्यकर्ताओं के बीच से स्थानीय नेता को ही भाजपा उम्मीदवार बनाने की मांग भी उठ रही है। ऐसा ही हाल गाजियाबाद लोकसभा सीट का है।

    गाजियाबाद से वर्तमान में केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह सांसद है और इस बार भी टिकट के प्रबल दावेदार है। यहां से भी कुमार विश्वास, अरुण गोविल, अनिल अग्रवाल, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह का नाम टिकट के दावेदारों में चल रहा है। 2009 से ही गाजियाबाद से बाहरी नेताओं को टिकट मिलता रहा हैं। 2009 में राजनाथ सिंह यहां से सांसद चुने गए तो 2014 और 2019 में यहां के वोटरों ने जनरल वीके सिंह को रिकॉर्ड मतों से चुनाव जिताकर संसद में भेजा था। अब गाजियाबाद से भी स्थानीय नेता को ही टिकट देने की मांग उठ रही है। भाजपा नेताओं का कहना है कि एक-दो दिन में ही पार्टी उम्मीदवारों की घोषणा कर देगी।